जीवन के मायने

अपने आस पास जब भी देखती हूं तो मुझे लोग किसी न किसी परेशानी का रोना रोते दिखाई देते है या परनिंदा में संलग्न दिखाई देते हैं। यह देखकर मैं सोच में पड़ जाती हूं कि क्या ये लोग जीवन के मायने समझते हैं ? मेरा - तेरा, अपना-पराया, करते हुए छोटी-छोटी बातों पर लडते हुए ये जिंदगी का रस लेना ही भूल जाते हैं, इन्हें अपने सिवा किसी की फिक्र नहीं होती रिश्ते नाते इनके लिए बोझ होते हैं। स्वार्थ इन पर इस तरह हावी होता है कि उसके आगे दूसरों का सुख - दुख इन्हें दिखाई नहीं देता । इनका जीवन खुद से शुरू होकर खुद पर ही खत्म हो जाता है। वास्तव में जीवन क्या है? इन्हें कभी समझ नहीं आता । जीवन के उद्देश्य से अपरिचित ये लोग सांसारिक माया को सर्वोपरि मान कर धन - सम्पत्ति के लिए आजीवन परेशान रहते हैं । मैं ये नहीं कहती कि ये वस्तुएं जरूरी नहीं पर उन्हें ही जीवन मान लेना गलत है। जब जीवन पर ही किसी का हक नहीं तो वस्तुओं पर हक जमाना, उसके लिए अपनों को कष्ट पहुंचाना बेमानी है। अगर आप खुश रहना चाहते हो तो तो जीवन के प्रति नजरिया बदलना होगा। जितना खुश रहोगे और दूसरों को रखोगे, उतना ही मन तृप्त रहेगा। ...