दस्तूर जिंदगी का


जिंदगी के सफर में
लोग मिलते हैं
मिलकर बिछड़ जाते हैं
कोई दिल में बस जाता है
कोई याद बन जाता है
कोई साथ निभाता है
कोई अपनी छाप छोड जाता है
कोई सच्चा दोस्त बन जाता है
कोई दोस्त बन दगा कर जाता है
कोई दूर होकर भी बहुत पास होता है
कोई पास होकर भी बडा दूर होता है
परिचय से परिचित होने की शुरुआत होती है
जब दो अजनबियों की मुलाकात होती है
परिचित होने पर आदमी की पहचान होती है
बातचीत इसका मुकाम होती है
ये सफर अनवरत चलता रहता है
रिश्ता बनता या बिगडता रहता है
मिलना बिछडना चलता रहता है
क्योंकि आदमी अकेला नहीं रहता है
ये मिलना बिछडना है खेल जिंदगी का
यह खेल ही दस्तूर जिंदगी का

अभिलाषा चौहान
स्वरचित












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