सवैया छंद प्रवाह

सवैया छंद सीखते हुए कुछ पदों का सृजन  । 


              सुमुखि सवैया

121 121 121 12,1 121 121 121 12


1-सिय वियोग

चले रघुवीर तुणीर लिए, मन में सिय का बस़ ध्यान रहे।

अनेक विचार उठे मन में,हर आहट वे पहचान रहे।

प्रयास करें पर कौन सुने,वन निर्जन से सुनसान रहे।

दिखे सब सून प्रसून दुखी,मन पीर वियोग निशान रहे।

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2-राम वन गमन

चले रघुवीर सुवीर बडे,मुख चंद्र समान लगे जिनका।

सहोदर संग प्रवीण दिखे,बस रूप अनूप लगे उनका।

सजे पुर बाग प्रदीप जले,मन मोहित मोद लगे छनका।

कहें सब आज तुणीर धरे, ऋषि वेश सुवेश लगे इनका।

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              गंगोदक सवैया


गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'।

212 212 212 212, 212 212 212 212


1-गोपी विरह


देखती राह हैं गोपियाँ राधिका,श्याम भूले नहीं याद आते रहे।

आज सूनी पड़ी गाँव की ये गली,पीर देखो बढ़ी बात कैसे कहे।

प्रीत झूठी पड़ी मीत ऐसा मिला,आग ऐसी लगी नैन कैसे बहे।

झूठ बोले सदा साथ टूटे नहीं,नींद आती नहीं चैन कैसे गहे।

2-कृष्ण प्रेम

गोपियाँ राधिका झूमती नाचती,रास कान्हा रचाते इसी ठाँव में।

बाँसुरी बाजती गीत गाती सभी,पैंजनी प्रीत की बाजती पाँव में।

श्याम के रंग में खो गई है सभी,यामिनी बीतती कृष्ण की छाँव में। 

नीतियाँ रीतियाँ प्रीत की ही चले,देखते देव हैं श्याम के गाँव में।

3-मरते रिश्ते

धूल कैसी उड़ी आज के काल में,धूल रिश्ते हुए प्रेम ठंडा पड़ा।

काटते हैं जड़ें स्वार्थ में डूब के,त्याग भूले सभी द्वेष ऐसा बढ़ा।

मानवी दानवी भेद सारे मिटे,भेद जानो नहीं रूप ऐसा गढ़ा।

भूख कैसे मिटे लोभ देखो बढ़े,छीनते हर्ष हैं मोह ऐसा चढ़ा।

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             मुक्तहरा   सवैया 


मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघु वर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है

121 121 121 12, 1 121 121 121 121


1- वर्षा आगमन

घटा घनघोर दिखी नभ पे, चमके तड़िता मचता अब शोर।

पड़ी अब बूँद धरा हरषे,नद नीर बहे नचते वन मोर।

वियोग बढ़े विरही तरसे,मन पीर बढ़े करती वह रौर।

जले तन आज बहे नयना,मन मीत मिले तब हो फिर भोर।

2-अति वृष्टि

करें घन शोर भयानक सा,भयभीत सभी बरखा घन घोर।

पहाड़ ढहे गिरते घर भी,सपने सबके बहते अब जोर।

नदी तट तोड़ घुसी घर में, लहरें करती कितना अब रौर।

कटे वनवृक्ष अकाल पड़े, तड़पे जनजीव रहा न ठौर।

3-जीवन रीत

चलो सब साथ मिटें अब भेद,जगे मन प्रेम खिले अब फूल।

बचे दिन चार घुटी मन आस,जियो हिय खोल हटे सब शूल।

गई यह रात उगा नव सूर्य,छँटा तम देख उड़ी सब धूल।

प्रभो मन जाप करें जब आप,यही बस जीवन का अब मूल।

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           महाभुजंगप्रयात सवैया

122 122 122 122,122 122 122 122

1-माँ भवानी

सुनो माँ भवानी हमारी कभी तो,लिखे लेखनी भाव सारे हमारे।

पुकारे सदा ध्यान धारें तुम्हारा,जगे ज्ञान सोया बनो माँ सहारे।

नहीं साथ कोई तभी आँख रोई,जले दीप साँचा अँधेरा मिटारे।

रचूँ छंद ऐसा मिले मार्ग मेरा,दुखी भक्त रोता तुम्हीं को पुकारे।

2-गौरी नंदन गणेश

हरो विघ्न सारे गणेशा हमारे,दिखे राह कोई बने काज सारे।

गणाधीश गौरी लला हो कृपाला,हरो पाप तारो बनो तो सहारे।

कभी तो सुनोगे करोगे कृपा भी,जगी आस ऐसी तभी तो पुकारे।

मिटे ताप सारा कट़े कष्ट कारे,करूँ वंदना ये सभी हैं तुम्हारे।

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                मदिरा सवैया


मदिरा सवैया में 7 भगण (ऽ।।) + गुरु से यह छन्द बनता है, 10, 12 वर्णों पर यति होती है। इसमें वाचिक भार लेने की छूट नहीं है ।


मापनी ~~

211 211 211 2, 11 211 211 211 2

1 माधव मोहन

माधव मोहन मोहक से,मन मंदिर में नित वास करें ।

पंकज आनन सुंदर सा,अधरों पर चंचल हास धरें।

भृंग लगे उनके नयना,नित गोपिन संगत रास करें।

मुरली मंजुल संग रखें,सब भक्तन की वह पीर हरें।

2  जीवन संकट

कानन काट दिए जबसे,जल बूँद नहीं धरती तरसे।

ताल सरोवर सूख चले,थल दूषित मेघ नहीं बरसे। 

प्रेम घटा धन धान्य लुटा,सुख छूट गए सबके कर से।

जीवन संकट आन घिरा,तन रोग मिले मन क्यों हरषे।

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                 किरीट सवैया

किरीट सवैया नामक छंद आठ भगणों से बनता है। तुलसी, केशव, देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है। इसमें 12, 12 वर्णों पर यती होती है।

211 211 211 211, 211 211 211 211


1 गोपी उपालंभ


रीति अनूप चले तुम माधव,प्रीति किए हम भेंट मिला तम।

रास रचाकर भूल गए सब,उद्धव योग कहें सुनते हम।

नीम लगे हमको उपदेशक,दूर बसे तुम पीर लगे कम।

ध्यान बसे तुम भूल गए सुध,कौन सुने नयना रहते नम।

2 राम रसायन

राम रसायन पान करो नित,उत्तम औषधि आधि मिटे सब।

तारण हार वही बस पालक,जीवन मार्ग यही बस है अब।

मोक्ष मिले भव पाप कटें नित,जाप करो मन नाम यही तब।

सिंधु समान उदार बड़े वह,दीन दयाल पुकार सुने जब।

3 जीवन रीति

कौन कहे किसके मन की  जब ,प्रेम जगे मतभेद मिटे तब।

नीम लगे कड़वा कड़वा पर,काम करे बन औषध ये जब।

प्रेम क्षमा मन बास करें छल,छंद मिटे करुणा मय हो अब।

रोग मिटे सुख हो मन में तब,लोभ मिटे मन शांत रहें जब।।

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              मत्तगयंद सवैया

१२, ११ वें वर्ण पर यति

२११ २११ २११ २११,२११ २११ २११ २२

1 सावन

सावन की ऋतु मोह रही मन,कानन पुष्प खिले अब न्यारे।

चातक दादुर मोर प्रफुल्लित,मेघ घिरे नभ श्यामल कारे।

नाच रही सखियाँ सब मोदित,आज मिले मनभावन प्यारे।

पावस बूँद पड़ी धरणी पर,फूट पड़े नव अंकुर सारे।

2 भारत महिमा

भारत भूमि लगे अति सुन्दर,गंग पुनीत लगे उर माला।

श्रृंग हिमालय रक्षक शोभित,सागर पैर पखार विशाला।

अद्भुत संस्कृति ज्ञान विशारद,आहुत ये शरणागत पाला।

धर्म प्रचारक पीड़ित पालक,प्रेम क्षमा सुख सत्य शिवाला।

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                 वाम सवैया

वाम सवैया के मंजरी, माधवी या मकरन्द अन्य नाम हैं। यह 24 वर्णों का छन्द है, जो सात जगणों और एक यगण के योग से बनता है। मत्तगयन्द के आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह छन्द बन जाता है। केशव और दारा ने इसका प्रयोग किया है। केशव ने मकरन्द, देव ने माधवी, दास ने मंजरी और भानु ने वाम नाम दिया है।

121 121 121 121, 121 121 121 122

१ कृष्ण उपदेश

कहे घनश्याम सुनो अब पार्थ,निभा निज धर्म विकार मिटाओ।

बढ़ो पथ पे करने निज कर्म,धरो अब भार विवेक जगाओ।

समाज अधर्म अनेक प्रकार,सुवीर सरासन आज उठाओ।

अनंत अनादि कहे सब ज्ञान,यही बस सत्य सुधर्म निभाओ।

२ भक्ति धर्म

महेश दिनेश सुरेश गणेश, भजे जिनको नित ध्यान लगाएँ।

अनादि अनंत अछेद अभेद,वही सबके नित ज्ञान जगाएँ।

करो मन ध्यान भजो हरिनाम,विवेक विचार तभी सुख पाएँ।

जले मन दीप सुपावन कर्म,मिले तन मोक्ष विकार मिटाएँ।

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               अरसात सवैया

211 211 211 211, 211 211 211 2

१ कृष्ण रूप

माधव मोहन मोह रहे मन,कुंतल घूँघर सुंदर हास है।

श्याम कलेवर नीलम अंबर,अंबर पीत सुहावन खास है।

पंकज लोचन राकेश आनन,व्याप्त चराचर जीवन आस है।

मोहित ग्वालन भूल गई सुध,कृष्ण सखा उर अंतर प्यास हैं।

२ शासन के कुचक्र

शासन मौन कुचाल चले नित,दीन दुखी फिरता मन मार है।

श्वेद बहाकर पीकर चक्षुज,देख बना अब जीवन भार है।

चक्र कुचक्र फँसे बस दोलन,अंधड़ आकर दे नित हार है।

भूख जले निज गात गले फिर,नाव फँसी बस देख मँझधार है।

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                सुख सवैया

सुख सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु गुरु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के अन्तिम वर्ण को दीर्घ करने से यह छन्द बनता है।

मापनी ~~ 

112 112 112 112, 112 112 112 112 12

१ जीवन रीत

कहते सुनते लड़ते भिड़ते,यह जीवन व्यर्थ करें सब लोग हैं।

मन भेद पले मन प्रेम घटे, सबको प्रिय ये अपने सब भोग हैं।

धन लोभ बढ़े तब स्वार्थ डसे,उर द्वेष बसे पलते बस रोग हैं।

मन चंचल संयम चाबुक दे,नित ध्यान करो प्रभु का यह योग है।

२ भोर आगमन

नित नूतन भोर खुले पलकें, तब ईश कृपा बनती वरदान है।

जड़ जंगम में नित वो बसता,कहते सब ये वह तो भगवान है।

नित फूल खिले वन कानन में,उसकी छवि का दिखता प्रतिमान है।

उर अंतर में वह वास करें,मन मंदिर में करना बस ध्यान है।

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             अरविन्द सवैया

आठ सगण और लघु के योग से छन्द बनता है। 12, 13 वर्णों पर यति होती है और चारों चरणों में ललितान्त्यानुप्रास होता है।

112 112 112 112, 112 112 112 112 1

१ कृष्ण छवि

यमुना तट शोभित है जिनसे,मनमोहन माधव वे घनश्याम।

वनमाल गले लटके जिनके,नयना अरविन्द लगे अभि राम।

चलती सुरभी नित संग जिनके,यह गोकुल है जिनका निज धाम।

पट पीत सजे जिनके तन पे,जपिए उनका नित ही मन नाम।

२ ईश कृपा

दिनमान बुरे जब है चलते,तब साथ वही चलता हर बार।

बिगड़े सब काम कभी सबके,वह लेकर ऊपर ही सब भार।

रहता नित संग सदा वह ही,सम रूप करे सबसे वह प्यार।

प्रभु ध्यान करो रखलो उर में,वह तो सबका बस तारणहार।

३ महाराणा प्रताप

जब तीर चले तलवार चले,रण में तब वीर प्रताप महान।

उर साहस धीरज भाव धरे,बरसे अरि पे वह मेघ समान।

गुणगान करे जग वीर सपूत,सब छोड़ दिया रखने बस मान। 

बन रक्षक प्राण लिए कर में,उर तान खड़े अपने जग स्थान।

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              मानिनी सवैया  

मानिनी सवैया 23 वर्णों का छन्द है। 7 जगणों और लघु गुरु के योग से यह छन्द बनता है। वाम सवैया का अन्तिम वर्ण न्यून करने से या दुर्मिल का प्रथम लघु वर्ण न्यून करने से यह छन्द बनता है। तुलसी और दास ने इसका प्रयोग किया है।

121 121 121 121, 121 121 12112

१ वीर सपूत

सुवीर सपूत चले रण में,करते जयकार महान तभी।

मृगेन्द्र समान दहाड़ रहे,करते मुख से जयगान सभी।

कृपाण कमान निषंग लिए, बढ़ते पथ ज्यों पवमान कभी।

अराति अमित्र झुके पल में,भयभीत करें गुणगान सभी।

२ गणेश वंदना

गणेश विनायक विघ्न हरो, यह जीवन शापित भार बना।

विदीर्ण हुआ हिय भी अब तो,यह काल कराल विशेष घना।

सुमीत सखा कब संग चले, जब संकट बादल देख तना।

व्यथा बदली बनके बरसे,तम घोर सदैव विराज मना।

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             वागीश्वरी सवैया 

7 यगण + लघु+ गुरु 

122 122 122 122, 122 122 122 12

१ बेटी की चाह

सुता बोलती है पढूँगी लिखूँगी,सुनो तात मेरी यही कामना।

न बाँधों मुझे बंधनों में पिताजी,कहे लोग जो भी नहीं मानना।

कभी राह में शूल देखो कहीं तो,बनोगे सहारा मुझे थामना।

रखूँगी सदा नाम ऊँचा तुम्हारा,सभी संकटों का करूँ सामना।

२ बाल कृष्ण

यशोदा झुलाती सुनाती कहानी,कन्हैया हँसे झूलते पालना।

दिठौना लगाती बलैया उठाती,कहे चंद्र सा ये लगे लालना।

त्रिलोकी बने हैं खिलौना सभी का,लगे दृश्य प्यारा जगे भावना।

हँसाते सभी को जगा प्रेम देखो,मिटाते दुखों को सुने कामना।

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                चकोर सवैया

भगण × 7 + गुरु + लघु

12,11 पर यति 

211 211 211 211, 211 211 211

21 

१ गोपी प्रेम

माधव की मुरली सुनती जब,भूल गई सखियाँ सब काज।

मोहन तो मथुरा बसते अब,गूँज रही धुन कानन आज।

भूल गए अब गोकुल को वह,रास नहीं अब भावत राज।

नीर भरे नयना छलके मन,पीर बढ़ी बिखरे सब साज।

२ गोपी प्रेम

माधव मोहन मोह रहे मन,देख सखी सब नाचत मोर।

हाथ लिए मुरली अधरों पर,चंचल हास्य करे नित शोर।

पीत पटा तन पे अति शोभित,भानु दिखे नभ पे जस भोर।

नैनन से उनकी छवि देखत,चंद्र लगे वह देख चकोर।

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                  सुखी सवैया

सुखी सवैया नवीन सवैया 8 सगण+लघु लघु से बनता है; 12, 14 वर्णों पर यति होती है। सुखी सवैया 8स+2ल के अन्तिम वर्णों को दीर्घ करने से यह छन्द बनता है।

112 112 112 112, 112 112 112 112 11

१ गुरु वंदन

कहते जग में सब लोग यही, गुरु वंदन से सब पाप मिटा अब।

गुरु के वचनों पर ध्यान लगा,हिय में मन में नव आस जगा तब।

नव मार्ग दिखे नव भाव जगे,उर अंतर में नव प्यास जगे जब।

बढ़ना नित जीवन में पथ पे,यह शूल हटा कर पुष्प बिछा सब।

२ सच्चा मित्र

पवमान चले विपरीत दिशा,पथ में बिछते तब शूल अचानक।

पहचान करो तब मित्र वही,चलता नित साथ बने दुख हारक।

नवनीत समान सुकोमल जो,धरता मन साहस धीर सुधारक।

विपदा घनघोर खड़ी जब हो,कर थाम खड़ा बन वीर निवारक।


अभिलाषा चौहान







टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 09 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत बहुत सुन्दर अत्यन्त सराहनीय

    जवाब देंहटाएं
  3. विदुषी अभिलाषा जी को नमन। व्याकरण का तो मुझे ज्ञान नहीं किन्तु इन मनमोहक सवैयों को पढ़तेपढ़ते समय का भान ही नहीं रहा। कोई सवैया काव्य का रसिक आपके द्वारा रचित सवैयों में एक बार निमग्न हो जाए तो उस रस-सरिता से उबरने की अभिलाषा ही न रहे उसके मन में। आशा है, आप किसी को शिष्य अथवा शिष्या बनाकर अपनी यह विद्या उसे हस्तांतरित अवश्य करेंगी ताकि यह विधा भविष्य में भी जीवित एवं जीवंत रहे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 आपकी प्रतिक्रियाओं से मन में उत्साह का संचार होता है,यह मात्र एक कोशिश थी कुछ सीखने की,कुछ नया करने की,अपने महान कवियों की लेखनी के कौशल को महसूस करने की,इस छंद की गेयता,मधुरता,
      शब्द विन्यास को समझने की। थोड़ा-थोड़ा
      समझ पाई हूँ,अभी भी सीखना बाकी है।
      आपका पुनः आत्मीय आभार,सादर

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर,सार्थक सवैयों का सृजन किया है आपने ।आपको मेरा नमन एवम वंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सवैया छंद की अभिनव यात्रा सखी अंतर हृदय से बधाई।
    सभी सवैया सुंदर भाव पूर्ण।
    सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
  6. आपने तो हमको फिर से रीतिकाल की मधुरिमा में पहुंचा दिया अभिलाषा जी.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏 बस एक कोशिश है सीखने की

      हटाएं
  7. आपने बहुत ही सुंदर प्रयास किया है प्रयास क्या बल्कि बहुत सुंदर लिखा है आज के समय में इन छंदों को लिखने में प्रयोग करने से लोग कतराते हैं यह कठिन होता है। वर्तमान समय में प्रायः मुक्त छंद वाली कविता ही लिखी जा रही है। आपके द्वारा लिखी कुछ छंदों के उदाहरण को में अपनी पुस्तक में आपके नाम के साथ सम्मिलित करूंगा।
    शुभेच्छु
    हेमन्त श्रीवास्तव

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  8. आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है पर आप मेरे छंदों को अपनी पुस्तक में सम्मिलित करेंगे वो भी मेरे नाम से ये मुझे कैसे पता चलेगा..?
    सादर

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