संदेश

जनवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राम-राम बस सीताराम

चित्र
चित्र गूगल से साभार  भव्य सुशोभित मंदिर सुंदर अद्भुत अनुपम ललित ललाम आज अयोध्या हर्षित होती पुण्य पावनी राघव धाम। नागर शिल्प मनोहर मंदिर मंडप जिसमें दिखते पाँच स्तंभों पर देव विराजें  भित्ति चमकें जैसे काँच अष्टकोणीय गर्भ गृह में बाल रूप के शोभित राम आज अयोध्या................। तीन तलों का बना भवन ये स्वर्ण शिखर के शीश तने द्वार-द्वार पर बनी रंगोली  देख दीवाली आज मने झूम रहे भारत के वासी देखो पूर्ण हुआ शुभ काम आज अयोध्या...............। बाल राम की छवि अनोखी नैन तकें निशदिन अविराम राम रमें अब जग जीवन में राम राम बस सीता राम राम नाम की महिमा व्यापक राम चरण में कर विश्राम आज अयोध्या.................। अभिलाषा चौहान 

बना मंदिर सुहाना है

चित्र
बदलते भाग्य भारत के बना मंदिर सुहाना है स्वप्न जो था कभी मुश्किल हुआ अब वो पुराना है। उमड़ते हर्ष के बादल झड़ी आँसू की लगती है पधारे राम फिर कोशल दीवाली देख मनती है सभी भूले हैं सुध-बुध आज अवध को जो सजाना है। स्वप्न जो था कभी मुश्किल हुआ अब वो-----------। उछलती सरयू देखो आज चरण उनके पखारेगी छँटेंगे सारे अँधियारे कृपा प्रभु की निखारेगी हुआ वनवास अब पूरा जगत को ये दिखाना है  स्वप्न जो था कभी मुश्किल हुआ अब वो-----------। प्रतीक्षा आज शबरी की  हुई  है पूर्ण जग जाने अहिल्यायें हुईं जीवित रज पग राम की पाने बने श्री राम ही आदर्श उन्हें अपना बनाना है  स्वप्न था जो कभी मुश्किल हुआ अब वो------------। अभिलाषा चौहान 

चकोर सवैया

चित्र
"चकोर सवैया " यह वर्णिक छंद है।इस छंद में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात भगण और गुरू-लघु की यति से 23 वर्ण होते हैं।इसका प्रमुख गुण इसकी गेयता है। वर्ण गणना विधान - 211 211 211 211 211 211 211 21 ********************** राम रटे रसना नित ही मन में बसते सबके बस राम। मोह मिटे सब क्षोभ मिटे मिटता तन से मन से रति काम। मोक्ष मिले भव सागर से मिलता प्रभु के चरणों बस धाम। राम वही घनश्याम वही धर ध्यान सदा जप लो हरि नाम। ********************* आज विराजत राम लला पुर,मंदिर सुंदर निर्मित आज। मंडप अद्भुत शिल्प मनोहर,संत उमंगित पूरण काज। विश्व करे जयकार लगे हर ओर सुहावत राम सुराज। ढोल मृदंग बजे चहुँ ओर गँवे नित गीत बजें सब साज। *****"**************** राम सिया अति सुन्दर शोभित ,देख रहे पुर के सब लोग। आनन पंकज रूप असीम सु, हास सजे तन सज्जित जोग। भाग्य जगे उनके जिनके बन, चातक रूप करें रस भोग। भक्त सदा मन राम रखें उर, प्रेम बसे मिटते सब रोग। ********************** राम पधार रहे पुर में मन, फूल खिले उर हर्षित जान। साध सधी प्रण पूर्ण हुआ जब, मंदिर राम बना पहचान। दीप जले हर ओर सखी जग, में

सूर घनाक्षरी छंद

चित्र
********************** सूर घनाक्षरी घनाक्षरी छन्द की ही तरह यह भी चार चरणों में लिखा जाने वाला सम तुकांत छन्द है।इसके प्रत्येक चरण में कुल 30 वर्ण होते हैं।  8,8,8,6 पर यति अनिवार्य है।पदांत में 122( यगण) या 212 ( रगण ) रखा जा सकता है। लय, प्रवाह, भाव और गेयता पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। ********************** भज मन राम राम,राम ही परम धाम। राम से लगा ले मन,सोचे क्यों बावरे। कर मत ऐसे काम,रख मन राम नाम। पार वो लगाएँ नाव,छोड़ दे ताव रे।। प्रीत प्रेम सुख धाम,रस मय रूप श्याम। देख छवि अभिराम जागते भाव रे। राग उर गूँज रहे,भक्त सब झूम रहे। प्रिय से लगन लगी,मन में चाव रे। ********************** राम राम जाप करें, ध्यान बस राम रहें। छोड़ सब मोह माया,स्वयं को सुधारें। राम एक सत्य नाम,बाकी सब झूठे काम। सत्य को पहचान लें,जीवन उतारें। मोह लोभ क्रोध काम,नरक के चारों धाम। मद में जो डूब रहे,दूर हों किनारे। दीन दुखी सेवा कर,पर जन पीड़ा हर। प्रेम दया भाव मन,राम ही सहारे। अभिलाषा चौहान जयपुर

सूर घनाक्षरी छंद

चित्र
सूर घनाक्षरी छन्द का विधान ********************** घनाक्षरी छन्द की ही तरह यह भी चार चरणों में लिखा जाने वाला सम तुकांत छन्द है।इसके प्रत्येक चरण में कुल 30 वर्ण होते हैं।  8,8,8,6 पर यति अनिवार्य है।पदांत में 122( यगण) या 212 ( रगण ) रखा जा सकता है। लय, प्रवाह, भाव और गेयता पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। विषम - सम- विषम वर्जित ********************** पोष माघ घोर ठंड, थर-थर कांपे तन, पवन के चले तीर ,धूप अलसाती। सूर्य देव छुपे छुपे,कोहरे से ढके ढके। ठंडी ठंडी जले आग, नहीं गरमाती। मावठ हो जोर-जोर,ओले करें कैसा शोर। खेत-खेत पड़े पाला,कृषि मुरझाती। बच्चे-बूढ़े काँप रहे,बिस्तर से झांँक रहे। किट किट दाँत बजे ,नींद नहीं आती। अभिलाषा चौहान

कुण्डलिया छंद

चित्र
मोहन मथुरा में बसे, वृंदावन को छोड़। गोपी तड़पें प्रेम में,हृदय गए जो तोड़। हृदय गए जो तोड़,विरह में नैना बरसें। बनकर रहीं चकोर,नैन दर्शन को तरसें। कहती 'अभि' निज बात,चैन छीने हैं सोहन। कपटी माखनचोर,निठुर कितने हैं मोहन। ********************* मोहन उद्धव से कहें,ले जाओ संदेश। विरह वियोगी गोपियाँ,बिगड़ा उनका वेश। बिगड़ा उनका वेश,ज्ञान की देना शिक्षा। मुझसे करें न प्रेम,रखें संयम मन इच्छा। कहती 'अभि' निज बात,प्रेम का करके दोहन। बैठे अब मुख मोड़,क्रूर कितने हैं मोहन। ********************** आनन पंकज सा लगे,खंजन जैसे नैन। मोर मुकुट सिर पर सजे,छीने सबका चैन। छीने सबका चैन,गात है श्यामल उनका। अधरों पर मुस्कान,नाम मोहन है जिनका। कहती 'अभि' निज बात,चराएँ धेनू कानन। उनके चरण पखार, चंद्र सम शोभित आनन। ********************** अभिलाषा चौहान