संदेश

सितंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इंसान खो गया है

चित्र
इंसान खो गया है मजहब ही रह गया  इंसानियत की आबरू  का ताज ढह गया। कुछ आग यों लगी कि जलने लगा चमन समझे न धर्म को जो वो मिटा रहे वतन जो पत्थरों सा बना ये चोट सह गया। ये लड़ रहे लड़ा रहे, इस मूक भीड़ को बस देखते उजड़ते सब अपने नीड़ को आंसुओं की बाढ़ में प्रेम भाव बह गया। ये वो धरा नहीं जहां नीति न्याय समत्व था धर्म -धन से ज्यादा सबको प्रिय ममत्व था विषधरों की फूंक से गुलशन ही दह गया। अभिलाषा चौहान