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सवैया छंद- कृष्ण प्रेम

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1.भक्त की प्रार्थना माधव मोहन श्याम सदा तुम,भक्तन के बनके रखवारे। हे मुरलीधर प्राण बसे तुम,जीवन के बनके उजियारे। दास कहे मनकी सुनलो अब,मोह फँसे हम हैं दुखियारे। मीन बिना जल के तड़पे अब,घेर रहे तम बादल कारे। 2.कृष्ण सौंदर्य पट पीत सजे वनमाल गले,अधरों पर चंचल हास्य सखी। सिर मोर पखा लड़ियाँ लटके,मुरली कर में अभिराम दिखी। मन मोह लिया सुध भूल गई,नयना तकते अविराम सखी। यमुना तट धेनु चरावत वे,छवि नैनन से दिन-रात लखी। अभिलाषा चौहान

राम वनवास

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सवैया छंद राम चले वनवास सखी,नयना सबके नदियाँ बहती। लोचन पंकज से दिखते,सुन बात सभी सखियाँ कहती। लक्ष्मन संग सिया चलती,मुनि वेश धरे महलों रहती। आज अनाथ हुए सब हैं,यह शूल चुभे बस हैं सहती। अभिलाषा चौहान

नीरस रंगहीन से रिश्ते

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अपने पन की बातें करते ऊपर से दिखते जो बाँके सुख के साथी बनकर बैठे बोझ समझ रिश्तों को हाँके। तरुवर तकते आज देहरी ठूँठ बने हैं स्वामी जिसके आँखों में सावन भादों है प्रेम कुएँ सब प्यासे सिसके चिथड़ा-चिथड़ा होता जीवन कौन कभी भरता है टाँके।। अधरों पर आते-आते ही चीख सदा घुट कर रह जाती अपने-अपने आसमान में कितनी बातें शोर मचाती रूठे जब प्रतिबिंब स्वयं के कष्ट अलग से दर्पण झाँके।। उजड़े-उजड़े मधुवन सारे पुष्प झरें खिलने से पहले काँटे अपना शीश उठाएँ जिए वही जो ये सब सहले नीरस रंगहीन से रिश्ते  मौन रखें पर सब है ढाँके।। अभिलाषा चौहान