नीरस रंगहीन से रिश्ते


अपने पन की बातें करते

ऊपर से दिखते जो बाँके

सुख के साथी बनकर बैठे

बोझ समझ रिश्तों को हाँके।


तरुवर तकते आज देहरी

ठूँठ बने हैं स्वामी जिसके

आँखों में सावन भादों है

प्रेम कुएँ सब प्यासे सिसके

चिथड़ा-चिथड़ा होता जीवन

कौन कभी भरता है टाँके।।


अधरों पर आते-आते ही

चीख सदा घुट कर रह जाती

अपने-अपने आसमान में

कितनी बातें शोर मचाती

रूठे जब प्रतिबिंब स्वयं के

कष्ट अलग से दर्पण झाँके।।


उजड़े-उजड़े मधुवन सारे

पुष्प झरें खिलने से पहले

काँटे अपना शीश उठाएँ

जिए वही जो ये सब सहले

नीरस रंगहीन से रिश्ते 

मौन रखें पर सब है ढाँके।।


अभिलाषा चौहान






टिप्पणियाँ

  1. वाह!प्रिय सखी ,क्या बात है ,लाजवाब सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. रिश्तों को बाखूबी टटोला है आपने ...
    गहरी याचना ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर अभिलाषा जी !
    दिल को छू लेने वाली लेकिन थोड़ा उदास करने वाली यथार्थवादी कविता !

    जवाब देंहटाएं
  4. तरुवर तकते आज देहरी
    ठूँठ बने हैं स्वामी जिसके
    आँखों में सावन भादों है
    प्रेम कुएँ सब प्यासे सिसके
    चिथड़ा-चिथड़ा होता जीवन
    कौन कभी भरता है टाँके।।
    आज के रिश्तों का कटु सत्य बयां करता बहुत ही लाजवाब नवगीत।

    जवाब देंहटाएं
  5. दिल को छू जाने वाली अत्यंत मार्मिक रचना!

    जवाब देंहटाएं
  6. रूठे जब प्रतिबिंब स्वयं के

    कष्ट अलग से दर्पण झाँके।।---सुंदर सृजन...।

    जवाब देंहटाएं
  7. तरुवर तकते आज देहरी

    ठूँठ बने हैं स्वामी जिसके

    आँखों में सावन भादों है

    प्रेम कुएँ सब प्यासे सिसके

    मार्मिक सृजन सखी ...

    जवाब देंहटाएं
  8. अधरों पर आते-आते ही
    चीख सदा घुट कर रह जाती
    अपने-अपने आसमान में
    कितनी बातें शोर मचाती
    रूठे जब प्रतिबिंब स्वयं के
    कष्ट अलग से दर्पण झाँके।।


    सुन्दर सृजन....

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह!बहुत ही सुंदर नवगीत दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. सहृदय आभार सखी 🙏🌹 सादर

    जवाब देंहटाएं
  11. "...
    अपने पन की बातें करते
    ऊपर से दिखते जो बाँके
    सुख के साथी बनकर बैठे
    बोझ समझ रिश्तों को हाँके।
    ..."
    .................ऐसे साथी हमारे आसपास बहुत होते है।

    "...
    रूठे जब प्रतिबिंब स्वयं के
    कष्ट अलग से दर्पण झाँके।।
    ..."
    .................अहा! क्या बात है। अंतर्मन की गहराई लिख दी आपने।

    "...
    जिए वही जो ये सब सहले
    नीरस रंगहीन से रिश्ते
    ..."
    ....................बिलकुल सही। यह हमे जीवन के अनुभवों से बखूबी सिख लेते हैं।
    वाकई आपने बहुत ही गहराई से विश्लेषण करके इस रचना को लिखा है। हर एक पंक्ति जीवन के कटु सत्य को लपेटे हुयी है। बेहतरीन रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  12. कितनों के अंतर्मन की वेदना को आपने वाणी दे दी, कटु सत्यवको मुखर कार्तिव्रचना ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम