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जुलाई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हो रही कितनी क्षति

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विकास के बढ़े चरण सभ्यता है बलवती दुराचार के राज में  गौण हो गई संस्कृति  कौन जाने किस घड़ी तन को कौन नोच ले गिद्ध मोर एक से  कैसे मन ये सोच ले घात में सियार भी ये समाज की गति.. युगों-युगों से चल रही रीति एक बस यही नारी तन को भोग लो लक्ष्य एक बस यही ताक पर नियम धरे फिर चली इनकी मति.. मुर्दों का समाज है  या लोग ही मुर्दा बने गैर तो बस गैर हैं रिश्ते धूल में सने हैं पतन की राह पर हो रही कितनी क्षति.. धर्म जाति शीर्ष पर इंसानियत रो रही है धरा भी हांफती मैल किसके ढो रही स्वर्ण सी आभा गई बन रहे सब अधिपति.. मुर्दों को जिंदा किया जिंदों को मुर्दा किया घृणा द्वेष बीज रोप अपनों को जुदा किया लकीर के फकीर सब बढ़ रहीं बस विकृति.. अभिलाषा चौहान 

हालत पतली जीवन जर्जर

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छलक रही है मन की गगरी नयनों से नित गिरते निर्झर भावों के अंकुर मुरझाए हृदय भूमि जब हो ना उर्वर जलते जग में जले वेदना तप्त धरा के सूखे उपवन करुणाकर की करुणा सोई टूट पड़े हैं आफत के घन बिन मोती के सीप आवारा बिन पानी के प्यासे सरवर... तोड़ किनारे बहती नदियां पर्वत अपनी व्यथा बताएं आंखों के अंधे सब देखें उनसे तो पाषाण लजाएं भौतिकता की चकाचौंध में सत्य झूठ पर होता निर्भर... पीड़ा जिसकी वो ही जाने पर हित धर्म की बातें झूठी सभ्य समाज का लगा मुखौटा जाने कितनी नींदें लूटी सुख की सब परिभाषा भूले हालत पतली जीवन जर्जर.... अभिलाषा चौहान 

कभी सोचा तो न था...???

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  दुशासन के पंजों में सहमी बेसुध मर्यादा  सहस्त्र बाहु दुशासन की अट्टहास ,भद्दी टिप्पणियों से जलती उसकी रूह पथराई आंखों में  खौफ का तांडव  ऐसा भी होगा कभी सोचा तो न था...?? भक्षकों की अनियंत्रित भीड़ में कोई रक्षक तो न था...?? चीरहरण को रोकने कोई कृष्ण तो न था..?? असुरों की फौज में असहाय कठपुतली सी अपनी आंखों को भींचे तन पर रेंगते असंख्य  सर्पों के दंश ऐसे होगा उसका विध्वंस  कभी सोचा न था...?? सीता का हरण द्रौपदी का चीरहरण हर युग में होगा और  बार बार होगा  कभी सोचा तो न था...?? राम और कृष्ण का भय अब किसी को कहां रावण और दुशासन का राज हर ओर होगा कभी सोचा तो न था...?? सभ्यता के चरणों में संस्कृति का मरण  ऐसे होगा कभी सोचा तो न था..?? सभ्य समाज की  बढ़ती असभ्यता का भुगतेंगी दंड बेटियां कभी सोचा न था...?? अभिलाषा चौहान