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मौत से साक्षात्कार

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प्रकाश एक बेहतरीन लेखक था,पाठक उसकी रचनाओं की प्रतीक्षा करते थे। कहानी हो या उपन्यास या फिर कविता उसकी लेखनी कमाल की थी और पात्र-चयन तो और भी उत्तम।पिछले कुछ दिनों से वित्तीय समस्या के कारण वह तनाव में चल रहा था ,इससे उसका लेखन भी अछूता नहीं रहा था।वह एक कहानी लिख रहा था ,जो अभी अधूरी थी। एक दिन प्रकाश किसी काम से जा रहा था।उसका ध्यान भटका हुआ था,अचानक एक कार तेजी से आई और उसने प्रकाश को टक्कर मार दी।प्रकाश उछलकर दूर गिरा और बेहोश हो गया।उसे अस्पताल ले जाया गया।सिर में चोट लगी थी। डाक्टर्स जांच कर रहे थे।परिजन अस्पताल पहुंच चुके थे। डाक्टर ने सभी को बता दिया था कि हालत सीरियस है , आपरेशन होगा ,उसके बाद भी कुछ कहा नहीं जा सकता।परिजन दुखी थे,डाक्टरों ने ईश्वर पर विश्वास रखने और दुआ करने के लिए बोल दिया था। आपरेशन सफल रहा था लेकिन प्रकाश कोमा में चला गयाथा, कोमा  में व्यक्ति का शरीर निष्क्रिय हो जाता है, क्योंकि उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है,लेकिन बाहर होने वाली बातचीत कभी-कभी दिमाग को सक्रिय कर देती है और व्यक्ति को कोमा से बाहर आने में मदद करती है। परिजनों को डाक्टर

ये कैसी पर्दादारी..!!

नशा मुक्ति केंद्र में बेटे को तड़पता देख ममता की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी,मात्र अठारह वर्ष का था उसका बेटा। बड़ी मनौतियां मांगी थी,तब गोद भरी और आज यह दशा...!उसे पश्चाताप हो रहा था कि उसने बेटे की गलतियों पर सदा पर्दा डाला...कभी पति को सच नहीं बताया,परिजनों की बात अनसुनी की और आज.?    ऐसे ही न जाने कितने प्रसंग हमें अपने आस-पास देखने को मिलते हैं...पिता बेटे के परीक्षा-परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है, परिणाम नदारद,कारण मटरगश्ती और काॅलेज बंक, ममता के अंधे पर्दे में उन्हें कभी बेटे की गलतियां नजर नहीं आई।और आज सब कुछ हाथ से निकलता नजर आ रहा है..!    कहने का तात्पर्य यही है कि जीवन में कई बार समस्याओं को पर्दे में छिपाकर समाधान ढूंढा जाता है,जबकि यह किसी समस्या का समाधान नहीं बल्कि एक नयी समस्या का जन्म है।मां के द्वारा बच्चों की गलतियों पर पर्दा डालने की बात हो या पति -पत्नी के मध्य अविश्वास का पर्दा हो या फिर किसी भी बात को एक-दूसरे से छिपाने का प्रयत्न।ये सभी पारिवारिक क्लेश के जन्मदाता है। झूठ,अविश्वास,क्रोध,अज्ञानअहम,लोभ,मोह मानव आत्मा पर पड़े हुए पर्दे हैं जब मनुष्य वास्त