ये कैसी पर्दादारी..!!
नशा मुक्ति केंद्र में बेटे को तड़पता देख ममता की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी,मात्र अठारह वर्ष का था उसका बेटा।
बड़ी मनौतियां मांगी थी,तब गोद भरी और आज यह दशा...!उसे पश्चाताप हो रहा था कि उसने बेटे की गलतियों पर सदा पर्दा
डाला...कभी पति को सच नहीं बताया,परिजनों की बात अनसुनी की और आज.?
ऐसे ही न जाने कितने प्रसंग हमें अपने आस-पास देखने को मिलते हैं...पिता बेटे के परीक्षा-परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है,
परिणाम नदारद,कारण मटरगश्ती और काॅलेज बंक, ममता के अंधे पर्दे में उन्हें कभी बेटे की गलतियां नजर नहीं आई।और आज सब कुछ हाथ से निकलता नजर आ रहा है..!
कहने का तात्पर्य यही है कि जीवन में कई बार समस्याओं को पर्दे में छिपाकर समाधान ढूंढा जाता है,जबकि यह किसी
समस्या का समाधान नहीं बल्कि एक नयी समस्या का जन्म है।मां के द्वारा बच्चों की गलतियों पर पर्दा डालने की बात हो या पति -पत्नी के मध्य अविश्वास का पर्दा हो या फिर किसी भी बात को एक-दूसरे से छिपाने का प्रयत्न।ये सभी पारिवारिक
क्लेश के जन्मदाता है।
झूठ,अविश्वास,क्रोध,अज्ञानअहम,लोभ,मोह मानव आत्मा पर पड़े हुए पर्दे हैं जब मनुष्य वास्तविकता को अस्वीकार कर इन विकारों को जीवन में महत्त्व देता है तो वह स्वत ही विनाश की ओर अग्रसर हो जाता
है,पुत्रमोह से विवश ममता जैसी न जाने कितनी माताएं संतानों की गलती सुधारने की जगह उसे छुपाने की कोशिश करती है,
जिसका खामियाजा उन्हें,संतान को और पूरे परिवार ,समाज यहां तक की देश को भी भुगतना पड़ता है।सत्य चाहे कितना ही
कटु क्यों न हो..उसे स्वीकार करने का साहस प्रत्येक व्यक्ति में होना चाहिए..क्योंकि झूठ
का पर्दा एक न एक दिन उठता ही है।अब प्रश्न यह है कि हम अपनी कमियों या समस्याओं को दूसरे के समक्ष क्यों उजागर
करें?ये तो अपने आपको दूसरों की नजरों से गिराना हुआ..बस यही एक सोच है जो हमें गलत मार्ग पर ले जाती है..साहस से
अपनी गलतियों को स्वीकारना और उन्हें दूर करना ही मनुष्य को महान बनाता है,जो लोग महान कहलाए या बने...उनके व्यक्तित्व की खूबी यही रही कि उन्होंने गलतियों पर पर्दा डालने की
जगह उन्हें सुधारने का काम किया।
समाज की अनेक समस्याओं का मूल भी यही है,फिर चाहेभ्रष्टाचार हो,अन्याय हो,उत्पीड़न हो,शोषण हो...क्योंकि अनैतिक कार्यों में लिप्त व्यक्ति इसी भ्रम में रहता है
कि उसके कुकर्म हमेशा परदे में रहेंगे,वह भूल जाता है कि हम सब कुछ छिपा सकतें हैं,पर सच को पर्दे में कैद नहीं कर सकते,
वो सच जो ईश्वर देख रहा है उसकी खुद की आत्मा देख रही है।एक गीत याद आ रहा है-
पर्दे में रहने दो,पर्दा न उठाओ।
पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा।
ठीक है भाई, भेदों को छुपाने के लिए पर्दा जरुरी है,पर विवेक के साथ,अर्थात व्यक्ति को इतनी समझ होनी चाहिए कि ऐसी बातें
जो आगे चलकर अहितकर बन सकती है या जिसका खामियाजा उसे , परिवार को ,समाज को और देश को भुगतना पड़ सकता
है, उन्हें बढ़ावा न दिया जाए, न हीं सच से भागने की आदत अपनाई जाए।काश!ममता
में साहस होता कि वह बेटे की गलतियों को सुधारती न कि आंखों को बंद करके उसकी
गलतियों को नादानी समझती तो आज उसे रोना न पड़ता।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बड़ी मनौतियां मांगी थी,तब गोद भरी और आज यह दशा...!उसे पश्चाताप हो रहा था कि उसने बेटे की गलतियों पर सदा पर्दा
डाला...कभी पति को सच नहीं बताया,परिजनों की बात अनसुनी की और आज.?
ऐसे ही न जाने कितने प्रसंग हमें अपने आस-पास देखने को मिलते हैं...पिता बेटे के परीक्षा-परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है,
परिणाम नदारद,कारण मटरगश्ती और काॅलेज बंक, ममता के अंधे पर्दे में उन्हें कभी बेटे की गलतियां नजर नहीं आई।और आज सब कुछ हाथ से निकलता नजर आ रहा है..!
कहने का तात्पर्य यही है कि जीवन में कई बार समस्याओं को पर्दे में छिपाकर समाधान ढूंढा जाता है,जबकि यह किसी
समस्या का समाधान नहीं बल्कि एक नयी समस्या का जन्म है।मां के द्वारा बच्चों की गलतियों पर पर्दा डालने की बात हो या पति -पत्नी के मध्य अविश्वास का पर्दा हो या फिर किसी भी बात को एक-दूसरे से छिपाने का प्रयत्न।ये सभी पारिवारिक
क्लेश के जन्मदाता है।
झूठ,अविश्वास,क्रोध,अज्ञानअहम,लोभ,मोह मानव आत्मा पर पड़े हुए पर्दे हैं जब मनुष्य वास्तविकता को अस्वीकार कर इन विकारों को जीवन में महत्त्व देता है तो वह स्वत ही विनाश की ओर अग्रसर हो जाता
है,पुत्रमोह से विवश ममता जैसी न जाने कितनी माताएं संतानों की गलती सुधारने की जगह उसे छुपाने की कोशिश करती है,
जिसका खामियाजा उन्हें,संतान को और पूरे परिवार ,समाज यहां तक की देश को भी भुगतना पड़ता है।सत्य चाहे कितना ही
कटु क्यों न हो..उसे स्वीकार करने का साहस प्रत्येक व्यक्ति में होना चाहिए..क्योंकि झूठ
का पर्दा एक न एक दिन उठता ही है।अब प्रश्न यह है कि हम अपनी कमियों या समस्याओं को दूसरे के समक्ष क्यों उजागर
करें?ये तो अपने आपको दूसरों की नजरों से गिराना हुआ..बस यही एक सोच है जो हमें गलत मार्ग पर ले जाती है..साहस से
अपनी गलतियों को स्वीकारना और उन्हें दूर करना ही मनुष्य को महान बनाता है,जो लोग महान कहलाए या बने...उनके व्यक्तित्व की खूबी यही रही कि उन्होंने गलतियों पर पर्दा डालने की
जगह उन्हें सुधारने का काम किया।
समाज की अनेक समस्याओं का मूल भी यही है,फिर चाहेभ्रष्टाचार हो,अन्याय हो,उत्पीड़न हो,शोषण हो...क्योंकि अनैतिक कार्यों में लिप्त व्यक्ति इसी भ्रम में रहता है
कि उसके कुकर्म हमेशा परदे में रहेंगे,वह भूल जाता है कि हम सब कुछ छिपा सकतें हैं,पर सच को पर्दे में कैद नहीं कर सकते,
वो सच जो ईश्वर देख रहा है उसकी खुद की आत्मा देख रही है।एक गीत याद आ रहा है-
पर्दे में रहने दो,पर्दा न उठाओ।
पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जाएगा।
ठीक है भाई, भेदों को छुपाने के लिए पर्दा जरुरी है,पर विवेक के साथ,अर्थात व्यक्ति को इतनी समझ होनी चाहिए कि ऐसी बातें
जो आगे चलकर अहितकर बन सकती है या जिसका खामियाजा उसे , परिवार को ,समाज को और देश को भुगतना पड़ सकता
है, उन्हें बढ़ावा न दिया जाए, न हीं सच से भागने की आदत अपनाई जाए।काश!ममता
में साहस होता कि वह बेटे की गलतियों को सुधारती न कि आंखों को बंद करके उसकी
गलतियों को नादानी समझती तो आज उसे रोना न पड़ता।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
उपदेश प्रधान रचना, आभार दी।
जवाब देंहटाएंयदि हम सत्य का अनुसरण करे, तो फिर किसी पर्दे की आवश्यकता ही क्यों हो ?
बात उपदेश की नहीं भाई, परिवार में ये प्रसंग देखें हैं कि बच्चों की परवरिश में ही मां उनकी
हटाएंग़लत आदतों पर पर्दा डालने की कोशिश करती हैं और दुष्परिणाम सामने आते हैं।ममता में अंधा
होना अनुचित है और फिर झूठ पर टिकी बुनियाद
तो कमजोर ही होती है सदा।
सहृदय आभार भाई आपका स्वास्थ्य कैसा है
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (0६ -१०-२०१९ ) को "बेटी जैसा प्यार" (चर्चा अंक- ३४८०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सहृदय आभार सखी,सादर
हटाएंउत्तम विचार
जवाब देंहटाएंममता में भी कभी कभी खामियां आ जाती है।
ये प्रसंग हर तीसरे घर की कहानी है।
क्या इस रचना को कविता कहना उचित होगा???
नये ब्लॉगर से मिलें अश्विनी: परिचय (न्यू ब्लोगर)
जी नहीं ,जब कविता लिखी ही नहीं गई तो कविता कैसे कहूं, आलेख लिखा है मैंने ,मेरा यह
जवाब देंहटाएंब्लाग कविता के बंधन में नहीं बंधा है।यह अनुभूतियों का ब्लाग है।
उत्तम प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार रोहितास जी सादर
आलेख को कविता कहना चलन में आ गया है अभिलाषा जी. माना कि आधुनिक कविता में तुकबंदी नहीं होती फिर भी उसमे एक लय, एक तारतम्य होता है. ये बात बहुत कम लोग जानते हैं.
हटाएंइसी अनजाने में हम आधुनिक कविता को मार दे रहें हैं... बस इसी लिए पूछ लिया था आपसे. प्लीज़ मेरी बात को अन्यथा ना लेवें.
बात बस सुधारने की है हमें ही तो सुधारना है ना. आप तो फिर भी अध्यापन करवाते हो.
मैंने कदापि अन्यथा नहीं लिया है रोहितास जी,जब प्रश्न उठेंगे तो उत्तर भी मिलेंगे,ज्ञान
हटाएंवर्धन कहीं से भी हो ,हमेशा ग्रहण करना
चाहिए क्योंकि कोई भी संपूर्ण नहीं होता।आपके
कथन से मैं पूर्णतः सहमत हूं।आपका बहुत-बहुत आभार
बहुत सुंदर आलेख लिखा दी👌
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
७ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार सखी श्वेता
हटाएंसाहस से अपनी गलतियों को स्वीकारना और उन्हें
जवाब देंहटाएंदूर करना ही मनुष्य को महान बनाता है
बिलकुल सही कहा आपने बहन ,इस अंधी ममता में कई बार घर और बच्चो को बर्बाद होते मैंने भी देखा हैं ,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
सहृदय आभार सखी,सादर
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।ममता और प्यार-दुलार भी सीमित ही होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंकोई भी विकार आना एक सहज प्रतिक्रिया है ...
जवाब देंहटाएंअपनी और दुसरे के कार्य कलाप के अनुसार ... प्रकृति अनुसार सब बदलते हैं ... मन, भाई बहन, माँ बाप ... सभी ... दौर है जो रहता है ...
सहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंसाहस से अपनी गलतियों को स्वीकारना और उन्हें
जवाब देंहटाएंदूर करना ही मनुष्य को महान बनाता है
बिलकुल सही कहा
सहृदय आभार संजय जी,सादर
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