रोई होगी भारत माता
जयचंदों के चक्रव्यूह में सत्य सदा ही मारा जाता घर में ही जब छुपे भेदिए राज भला कैसे बच पाता।। विश्वासों की आड़ लिए जो छीन रहे आभूषण उसके पाखंडों की बनी बेड़ियाँ प्राण घुटे मानवता सिसके वीर सपूतों की जननी को कहाँ भला ये बंधन भाता घर में ही जब छुपे भेदिए राज भला कैसे बच पाता।। आँखों चढ़ी लोभ की पट्टी भूल गए अपनी मर्यादा जाति धर्म विद्वेष फैलाकर बाँट रहे सब आधा-आधा आग लगाकर अपने घर में कुआँ कभी क्या खोदा जाता घर में ही जब छुपे भेदिए राज भला कैसे बच पाता।। आतंकों के विषबीजों पर सुख की ऐसी पौध लगाई बाँट दिया निज माँ को जिसने पीड़ा कहाँ समझ में आई खण्ड-खण्ड से खण्डित होकर रोई होगी भारत माता घर में ही जब छुपे भेदिए राज भला कैसे बच पाता।। अभिलाषा चौहान