दूर हों अब ये अँधेरे...
कुछ कहूँ मन की सुनाऊँ,
क्या सुनोगे प्राण मेरे?
दूर हों अब ये अँधेरे!
उस गगन के पार भी क्या,है बसा संसार कोई?
स्वप्न है या कामना है ,जागती हूँ या कि सोई?
तैरते इन बादलों का ,राज क्या है जानना है
नील लोहित नभ छुपाए, राज मेरा मानना है।
मैं न समझूँ छटपटाऊँ,
ये समझलो प्राण मेरे!
दूर हों अब ये अँधेरे...
टिमटिमाते तारकों से, भेजता संदेश कोई।
रश्मियाँ थिरकी धरा पर, ओस बूँदे देख सोई।
कौन है जो रूप बदले, चाह जिसकी जागती है।
प्रीत मेरी उस अदृश की, ओर नित ही भागती है।
मैं भी उसको जान पाऊँ,
क्या चलोगे साथ मेरे?
दूर हों अब ये अँधेरे...
हँस रहे ये फूल नित ही, देख लो कैसे चिढ़ाते ।
ये सरित निर्झर सदा से, प्यास मेरी हैं बढ़ाते।
ये तपस्वी श्रृंग देखो,अचल अविचल से खड़े हैं
झाँकते हैं उस गगन में,बात पर अपनी अड़े हैं।
चाह को कब रोक पाऊँ,
उड़ चलो हे प्राण मेरे...
दूर हों अब ये अँधेरे।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (13-1-22) को "आह्वान.. युवा"(चर्चा अंक-4308)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
सहृदय आभार सखी
हटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका बहुत-बहुत आभार
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंऐसा लगा जैसे महादेवी जी की कोई कविता पढ़ रहा हूँ। ऐसी काव्य-रचनाएं हृदयंगम करने के निमित्त होती हैं, मन एवं स्मृति में आजीवन रहती हैं। अधिक क्या कहूँ अभिलाषा जी? शीश नत है मेरा उस लेखनी के समक्ष जिससे यह रचना उत्कीर्ण हुई है।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 मैं क्या कहूँ शब्द ही नहीं है, आपको रचना पसंद आई मेरा सृजन सार्थक हुआ।बस कुछ लिख लेती हूँ यूँ ही,ये आपका बड़प्पन है कि आप अपने प्रेरणादायक शब्दों से मेरा निरंतर उत्साह वर्धन करते हैं,इससे और भी उत्कृष्ट करने की चाह जागती है।कृपया अपना स्नेह बनाए रखें।सादर🙏🙏💐💐
हटाएंवाह! भावभीनी मधुर और सरस रचना
जवाब देंहटाएंअद्भुत सखी! अद्भुत सृजन!
जवाब देंहटाएंजैसे कोई छायावादी स्थापित लेखनी फिर से मचल कर चल पड़ी।
सुंदर अति सुंदर।
सहृदय आभार सखी 🙏 सादर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ही मेरा संबल है।आपको रचना पसंद आई मेरा सृजन सार्थक हुआ।
हटाएंटिमटिमाते तारकों से, भेजता संदेश कोई।
जवाब देंहटाएंरश्मियाँ थिरकी धरा पर, ओस बूँदे देख सोई।
कौन है जो रूप बदले, चाह जिसकी जागती है।
प्रीत मेरी उस अदृश की, ओर नित ही भागती है।
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सारगर्भित संदेश देती अत्यंत सुंदर रचना।
सस्नेह।
सहृदय आभार प्रिय श्वेता जी,आप बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आई।आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ,सादर
हटाएंबहुत दिन बाद एक बहुत सुन्दर गीत पढ़ने को मिला । सुगठित शब्द, मधुर सरस शैली ,गेयता गंभीरता के साथ अप्रतिम भावभिव्यक्ति । सच आपका कालजई गीत है । पता नहीं आज कल लोग गीत क्यों नहीं लिखते
जवाब देंहटाएं। बहुत बहुत आशीष पूरे में से शुभ कामनाएं ।
सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंआपकी स्नेहिल आशीष भरी प्रतिक्रया पाकर ऐसा लग रहा है कि मेरा सृजन सार्थक हुआ।आपके शब्द मेरी प्रेरणा है।सादर प्रणाम स्वीकार कीजिए 🙏🙏