अवसर देखें करते घात
आल्हा छंद सपने सुंदर दिखे सलोने, कब पूरे होते हर बार। दाल कभी जो दिखती थाली, तो रोटी की मारामार।। मुट्ठी में पैसे आते बस, झोली भर कर ले सरकार। जीवन की आपाधापी में, खुशियों की होती है हार।। खाली बर्तन खाली मन है, चिंता मुफ्त मिले हर बार। रोगों से घिरते लोगों की नैया कैसे लगती पार।। घर बिकता बिकते हैं सपने, लुट जाता सारा संसार। वादों पर बस जीवन चलता, जीना दोधारी तलवार।। दो पाटों में पिसे आदमी, छोड़े बैठा जीवन आस। भ्रष्ट बुनें मकड़ी सा जाला, उसकी कैसे बुझती प्यास।। सुख-सुविधा की बातें करते, कानों तक कब पहुँचे बात माना जिनको अपना हमने अवसर देखे करते घात। अभिलाषा चौहान