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मेरे मोहन

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मेरे मोहन माधव मतवाले तेरे कुंतल काले घुंघराले इस सृष्टि का आधार हो तुम करूणा जल की रसधार हो तुम मैंने सौंप दिया सब है तुमको ये तुम जानो या मैं जानूं.... तेरे रूप की श्यामल देख घटा मेरे मन का अंधकार छटा तेरा प्रेम बरसता जीवन में तू ही तू है बस अब मन में  मैंने सौंप दिया है सब तुमको ये तुम जानो या मैं जानूं.... ये नैना कजरारे न्यारे हम तो अपना ही दिल हारे अब तुम श्रृंगार हो जीवन का सुध भूल चुके हैं इस तन का मैंने सौंप दिया है सब तुमको ये तुम जानो या मैं जानूं..... हम देख नहीं थकते तुम को तुम भूल गए हो क्या हम को कब आओगे मोहन प्यारे पथ देख-देख कर हैं हारे मैंने सौंप दिया है सब तुमको ये तुम जानो या मैं जानूं..... ये जीवन व्यर्थ हुआ तुम बिन पल घड़ियां बीती दिन गिन गिन पद पंकज की धूल हैं हम नित करते कितनी भूल हैं हम मैंने सौंप दिया है सब तुमको ये तुम जानो या मैं जानूं..... अभिलाषा चौहान 

धूलि चरणों की.....

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धूलि चरणों की लगाए और समझे जिसे चंदन सौंपती सर्वस्व अपना देव सदृश्य करती वंदन है कहाँ अस्तित्व उसका नाम भी अपना मिटाती माँग का सिंदूर प्यारा साथ चले जैसे साथी देखती नित एक सपना पुष्प जैसा खिले उपवन। वेदना मन में छुपाए जो धरा सा धीर धरती शूल आँचल में समेटे हर्ष की बरसात करती मारती रहती सदा मन कौन करता इसका मंथन। आँख में अम्बुद छिपाए नाचता नित हास्य मुख पर प्रेम की साकार प्रतिमा वार देती सुख दुखों पर यूँ हथेली रोक लेती चूड़ियों का मौन क्रंदन मौन रहती देखती सब जो धुरी परिवार की है है समर्पित तन औ मन से दे रही संस्कार जो है त्याग का कौन मोल समझे लौह बनती जो है कंचन। अभिलाषा चौहान 

ये कहां जा रहें हैं हम....??

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 एक यात्रा : एक प्रश्न अभी पिछले दो माह से अमेरिका में रह रहे अपने बेटे के पास गए थे। वहां पर प्रकृति का सुरम्य रूप देख मन बाग-बाग हो गया।सबसे ज्यादा प्रभावित वहां के साफ-सुथरे वातावरण ने किया। जहां देखो हरियाली, सड़कें साफ सुथरी , हरे-भरे लहलहाते वृक्ष और प्रदूषण नाम-मात्र को नहीं। ऐसा नहीं कि वहां फेक्ट्रियां नहीं हैं,ऐसा भी नहीं कि वहां गाडियां नहीं,सड़कों पर बस गाडियां ही दिखाई देती हैं पर एक्यूआई हमेशा पचास से कम...!!!सब कुछ व्यवस्थित...एक से बने सुंदर घर, घरों के आस-पास हरे भरे लाॅन...सबकुछ बड़ा ही मन मोहक... पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षा का मनमोहक रूप वहां देखने को मिला।हर घर के आगे एक से वृक्ष लगे हुए और उनकी समय पर देखभाल करते वहां के सरकारी कर्मचारी सबकुछ आश्चर्यजनक...ऐसा नहीं कि मैं अपने देश की बुराई कर रही हूं।हम लोग जहां रहते थे वहां अधिकतर भारतीय ही रहते हैं,वे सब वहां के नियमों का कड़ाई से पालन करते दिखते हैं।कचड़ा संग्रहण की कितनी उचित व्यवस्था है वहां...!!सबसे बड़ी बात कि वहां लोग नियमों का पालन बड़ी प्रतिबद्धता से करते हैं। कानून-व्यवस्था का कितना डर है वहां... गाडिय

जोड़ा कितना मेला

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जोड़ा कितना मेला, जग का सभी झमेला। पर काम नहीं कुछ आया, फिर भी पड़ा अकेला। ये रिश्ते नाते झूठे, क्यों माने इन्हें अनूठे। सब स्वार्थ के हैं साथी, वक्त पड़े सब रूठे। छोड़ो चिंता सारी, माया तलवार दुधारी, इसमें उलझोगे जितना, संकट झेलोगे भारी। कर्तव्य निभाओ अपना, पर देखो क्यों ये सपना। उम्मीदों से दिल टूटे, फिर दुख पड़ता है सहना। जीवन नश्वर ये सारा, दुख का सागर ये खारा। मृत्यु शाश्वत सत्य है, सबको बनना है तारा। ईश कृपा जब होगी, मानो खुद को सुखभोगी। चिंता करके क्यों सूखे, बनते हो दुख के रोगी। ये दुख खुद तुमने बोया, लालच मन में था सोया। सब मेरे अपने हो जाएं, पर मन का चैन ही खोया। मन करता है मनमानी, तन बूढ़ा हार ना जानी। तन-मन की इस उलझन में, जीवन होता बेमानी। बस सच है तो वो पल है, जो सुख से जीया कल है। रोना किसको सुनना है, सब उम्मीदों का छल है। अंत समय तू अकेला, पीछे छूटे जग मेला। तू जोड़-तोड़ में उलझा, जाएगा संग कब धेला ? रोते-रोते जग में ही आया, बचपन खुशियां ही लाया। फिर तूने दुख ही पाले,  सच भूला मन भरमाया। चिड़िया से सीखो जीना, बच्चों से ना उड़ना छीना। तुम उनको बांधों बंधन में, तो कष्टों

जमी है बर्फ

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  बर्फ आसमान से नहीं गिरती बूंद ही बनती है बर्फ धरती तक आते-आते आजकल हर ओर जमी है बर्फ...!! इस बर्फ ने दबाया उबलता लावा जमा दिया है रक्त जम गईं वे झीलें जहां संवेदन थी लहरें  छीन ली रौनकें जिंदगी की सर्वत्र है यही बर्फ.... जो जड़ है जड़ता का यह साम्राज्य जिससे चल रहा है अब भी अस्तित्व का संघर्ष प्रयास भी कि कभी यह बर्फ पिघल जाए और निकल आएँ अंकुर लहलहाने लगे जिंदगी चमकने लगे सत्य सूर्य की तरह यह बर्फ जो जरुरी है प्रकृति के लिए ..... लेकिन दुश्मन है मानवीयता की इसके जमने से  जीवंत होती निष्क्रियता परिवर्तन की चाह होती बेमानी  बर्फ की सतहों में दबे वायरस सक्रिय हैं  मिटाने को इंसानियत बुराई इसीलिए है शक्तिमान अच्छाई के समक्ष बर्फ में दबी अच्छाई हो जाती है दुर्बल भूल जाती है अहमियत अपनी। अभिलाषा चौहान 

मुक्तक

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मुक्तक विधान  मुक्तक में सामान्यतःचार पंक्तियाँ होती है।चारों पंक्तियों में मात्रा भार समान होता है।मुक्तक में लय और सुविधानुसार मात्रा निर्धारित की जा सकती है।इसकी चारों पंक्तियां अपने आप में भाव को अभिव्यक्त करने में सक्षम होती हैं। अर्थात मुक्तक चार पंक्तियों में भाव को अभिव्यक्त करने में सक्षम। इसके लक्षण निम्न प्रकार के हैं - १)मुक्तक पूर्वापर संबंध से मुक्त होते हैं।अर्थात यदि मुक्तक काव्य के रुप में प्रयुक्त हो रहा है तो उसका प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्ण और स्वतंत्र होगा। २) मुक्तक में प्रथम,द्वितीय और चतुर्थ पंक्ति तुकांत और तीसरी पंक्ति अतुकांत होती है। ३) गेयता और लयात्मकता मुक्तक का गुण है। इसलिए वर्ण या मात्रा का ध्यान रखा जाता है। ४) मुक्तक  चार पंक्तियों की ऐसी कविता रचना है।जो नियमबद्ध व लयबद्ध तरीके से किसी घटना या भाव को स्वतंत्र व सम्पूर्ण रूप से प्रकट करनें में सक्षम हो। यहां मैंने १६ मात्रा के मुक्तक लिखे हैं।इनका मात्रा भार कथन के हिसाब से बदल सकता है।ये २४,२८ मात्राओं वाले भी हो सकते हैं। मात्राएं समान होने से लय भंग नहीं होती। उदाहरण - कैसे-कैसे ये दिन बीते, कु