लहू के गीत...??
सीमाएं नित लिखती रहतीं
कितने लहू के गीत
इन गीतों में छलक रही है
बस आँसू और प्रीत
बिलख-बिलख कर पूछे चूड़ी
क्या था मेरा दोष
सीमाओं को बांधा किसने
उठता मन में रोष
ममता तड़पे राह निहारे
उजड़ी उसकी गोद
और बुढ़ापा दुष्कर बनता
वैरी बन गया मोद
दूर गया नैनों का तारा
होता मन भयभीत
दुख के बादल घिरकर आए
कैसी है यह रीत
आंचल में अब किसे छिपाए
झर-झर झरते नैना
सूनी शैया करवट बदले
छिन गया मन का चैना
आस मिटी और टूटी लाठी
सागर मन लहराए
यादों के जंगल में घूमें
सीने से उसे लगाए
उजड़ा आंगन सूनी देहरी
मौन बना है मीत
सब मौसम बेरंग हुए हैं
गर्मी वर्षा शीत
ढूंढ रही वह अपना छौना
सूना है आकाश
तारे भी मद्धम दिखते हैं
चंदा हुआ उदास
सपने धूसर सब बेरंगे
कौन भला ये जाने
जिसकी पीड़ा वो ही भुगते
जग तो लगा भुलाने
खुशियों के सब पुष्प झरे
मुख पर छाया पीत
जग को केवल प्यारी लगती
अपनी-अपनी जीत
अभिलाषा चौहान
बहुत मार्मिक कविता !
जवाब देंहटाएंऊंची-ऊंची कुर्सियों पर बैठे 75 साल और 80 साल के बुज़ुर्ग जवानों की शहादतों पर घड़ियाली आंसू बहाते हैं फिर कुछ दिनों बाद उन शहीदों को वो कुर्सीधारी ही नहीं, बल्कि सारा देश भूल जाता है.
सहृदय आभार आदरणीय शहादत का मोल तो सिर्फ परिवार वाले ही चुकाते हैं उनकी पीड़ा को भला कौन बांट सकता है?आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंहृदयस्पर्शी सृजन सखी ...
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंनि : शब्द!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 20 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंबिलख-बिलख कर पूछे चूड़ी
जवाब देंहटाएंक्या था मेरा दोष
सीमाओं को बांधा किसने
उठता मन में रोष
बहुत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी सृजन।
शहीदों के परिजनों पर क्या गुजरती है वे ही जानते है, दो दिन की हमदर्दी से उम्र भर का दर्द नहीं मिटता ।
सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
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