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जगा देता है आस

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समय के थपेड़े हिला देते हैं आत्मविश्वास..! डूबती-उतराती जीवन की नैया को भंवर से बचाने की कोशिश  कांपते हाथों में थामे पतवार लहरों से लड़ने की जद्दोजहद और अकेलापन....? खोखले रिश्ते में  दम तोड़ता अपनापन.. स्वार्थ की अमा उम्मीद की बुनियाद को चुनती दीमक सी.... नैराश्य के बादलों से दुख की बरसात... छीन लेना चाहती है जीवन का सुकून। फिर भी झिलमिलाती है अंतस में एक लौ जो बनती है प्रेरणा बनके सहारा टूटने नहीं देती है...! बूंद आंसू की जलते हुए हृदय को कर देती है शीतल। मैं कौन हूं...?? वह जो सृष्टि का नियंता ले रहा है परीक्षा शायद यही है वो अहसास जिससे आगे बढ़ने की चाह बलवती होती है उसके प्रेम का प्रसाद धो देता है अवसाद कहां हूं अकेली..!! जब वो है मेरे साथ मेरे लिए रचता व्यूह जिसे पार करना  और उसका सामीप्य पाना जगा देता है आस...! अभिलाषा चौहान