जगा देता है आस
समय के थपेड़े
हिला देते हैं आत्मविश्वास..!
डूबती-उतराती
जीवन की नैया को
भंवर से बचाने की कोशिश
कांपते हाथों में
थामे पतवार
लहरों से लड़ने की
जद्दोजहद
और अकेलापन....?
खोखले रिश्ते में
दम तोड़ता अपनापन..
स्वार्थ की अमा
उम्मीद की बुनियाद को
चुनती दीमक सी....
नैराश्य के बादलों से
दुख की बरसात...
छीन लेना चाहती है
जीवन का सुकून।
फिर भी झिलमिलाती है
अंतस में एक लौ
जो बनती है प्रेरणा
बनके सहारा
टूटने नहीं देती है...!
बूंद आंसू की
जलते हुए हृदय को
कर देती है शीतल।
मैं कौन हूं...??
वह जो सृष्टि का नियंता
ले रहा है परीक्षा
शायद यही है वो अहसास
जिससे आगे बढ़ने की चाह
बलवती होती है
उसके प्रेम का प्रसाद
धो देता है अवसाद
कहां हूं अकेली..!!
जब वो है मेरे साथ
मेरे लिए रचता व्यूह
जिसे पार करना
और उसका सामीप्य पाना
जगा देता है आस...!
अभिलाषा चौहान
छंद, लय अथवा तुक की बंदिशों से दूर, जीवन में आई चुनौतियों से जूझते रहने का सन्देश देने वाली एक प्यारी सी कविता.
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सर,जीवन की सत्यता है ये ,जो जी रहीं वहीं लिख दिया।सादर
हटाएंप्रेरणा देती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंवाकई जीवन की सत्यता वह भी ऐसी कि फिर फिर उठा दे ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन ।
सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंवाह!सखी ,बहुत ही प्रेरक ...।
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