यादें....






यादें उमड़ते बादलों सी

देती हैं सौगातें 

दिलाती हैं हर पल याद 

ये जो पल तुमने जिए

यही है तुम्हारी असली धरोहर

खट्टी-मीठी इमली सी

सौंधी मिट्टी की गंध सी

महकती बयार सी

इठलाती नवयौवना सी

बिन बुलाए मेहमान सी 

कभी भी चली आती हैं 

कभी हंसाती तो

कभी रुलाती हैं

ये धन,वैभव, संपत्ति भी

नगण्य है इनके समक्ष

इनके लिए होते हैं मतभेद

टूटते हैं घर

बिखरते हैं रिश्ते 

क्षीण पड़ती संबंधों की डोर

बस ये यादें ही अपनी

सबसे सगी

होश संभालते ही

यादें देने लगती हैं साथ

दिल की धड़कन सी

झपकती पलकों सी

चलती सांसों सी

कौन छीन सकता है भला

ईश्वर भी नहीं 

यही है बस अपनी

अकेलेपन की सच्ची साथी

प्राणों के लिए जैसे बाती

कराती हैं भूलों का अहसास 

बुझाती अपनेपन की प्यास

ये यादें जो संचित है 

ये सिखाती है जीवन का महत्व 

यही है जीवन का सार तत्व 

वर्तमान और भविष्य भी

इनके समक्ष है नगण्य 

यादें जो चली आती हैं 

पखेरु सी

चुगती है दाना और फिर

कर देती है संचार 

प्राणों में उत्साह का

या छलकता निर्झर आह का 

लेकिन फिर भी ये सत्य है 

हम हैं ये तब भी हैं 

और हम नहीं होगें ये तब भी रहेंगी।


अभिलाषा चौहान 


टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 30 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं
  3. बहुत ख़ूब अभिलाषा जी.
    हमारे जैसे लोग तो पुरानी यादों के सहारे ही ज़िन्दा हैं.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर

      हटाएं

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