अनोखी धरा
अखिल भुवन में धरा अनोखी
जीवन से जो संचारित
सूर्य-चंद्र रक्षक सम बैठे
पंचभूत पर आधारित।।
नील-हरित आभा से मंडित
रत्नों के भंडार भरे
सरिता,सागर और सरोवर
कल-कल-कल का नाद करे
षडऋतुओं का चक्र निरंतर
करता इसको श्रृंगारित
सूर्य-चंद्र रक्षक सम बैठे
पंचभूत पर आधारित।।
समरसता का भाव हृदय में
ममता की बरसात करे
देवों को भी प्रिय लगती है
आकर वे अवतार धरे
वेदों ने महिमा गाई है
काल करे सब निर्धारित
सूर्य-चंद्र रक्षक सम बैठे
पंचभूत पर आधारित।।
हरती सब संताप जीव का
सहन करे अपघातों को
करुणा कलित क्षमा करती है
मानव की सब बातों को
बन तपस्विनी धरणी तपती
सूर्य मंत्र कर उच्चारित
भानु-चंद्र रक्षक सम बैठे
पंचभूत पर आधारित।।
अभिलाषा चौहान
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२८-०१ -२०२२ ) को
'शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !'(चर्चा-अंक-४३२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सहृदय आभार सखी🙏 सादर
हटाएंवाह!सखी ,बहुत सुंदर👌
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 💐 सादर
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर कृति।
जवाब देंहटाएंवाह अभिलाषा जी !
जवाब देंहटाएंधरा-वसुंधरा का बहुत सुन्दर और अनोखा परिचय !
वाह!
जवाब देंहटाएंमन मुग्ध करने वाला सृजन
सुंदर व्यंजनाओं से सजा सुंदर नवगीत सखी।
जवाब देंहटाएंएक अनूठा गीत, निस्संदेह। एक-एक पद एवं शब्द-शब्द आनंदित कर देने वाला।
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत
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