वीर जवां निकल पडे.....
वतन पे मर मिटने
की सौगंध लिए
वो वीर जवां निकल पडे
छूटा घर छूटे मां बाप
छूट गया पत्नी का संग
आंखों में उनके ज्वाला थी
देश प्रेम की पी हाला थी
बाजू उनके फडक रहे
दुश्मन के दिल धडक रहे
सीमा पर चौकस रहते वो
खेले खून की होली वो
जब हरा दिया दुश्मन को
तो रोज मनाए दीवाली वो
जब लडते लडते शहीद हुए
या वीरगति को प्राप्त हुए
चेहरे पर उनके शांति थी
छलकती वीरता की कांति थी
जब लिपट तिरंगे आए वो
मां बाप गर्व से कह पाए
तू फर्ज निभा आया बेटा
तू कर्ज उतार आया बेटा
पत्नी की आंखों में आंसू
धीरज उसका छलक रहा
हूं अब शहीद की विधवा मैं
कमजोर नहीं, मजबूर नहीं
दूर होकर भी वो दूर नहीं
अमर हुआ है मेरा सुहाग
सबके कहां ऐसे होते भाग
वो वीर सपूत इस जननी का
अपना धर्म निभा आया
वो वीर शहादत की देखो
इक नयी इबारत लिख लाया ।
जय हिंद जय हिंद की सेना
अभिलाषा चौहान
की सौगंध लिए
वो वीर जवां निकल पडे
छूटा घर छूटे मां बाप
छूट गया पत्नी का संग
आंखों में उनके ज्वाला थी
देश प्रेम की पी हाला थी
बाजू उनके फडक रहे
दुश्मन के दिल धडक रहे
सीमा पर चौकस रहते वो
खेले खून की होली वो
जब हरा दिया दुश्मन को
तो रोज मनाए दीवाली वो
जब लडते लडते शहीद हुए
या वीरगति को प्राप्त हुए
चेहरे पर उनके शांति थी
छलकती वीरता की कांति थी
जब लिपट तिरंगे आए वो
मां बाप गर्व से कह पाए
तू फर्ज निभा आया बेटा
तू कर्ज उतार आया बेटा
पत्नी की आंखों में आंसू
धीरज उसका छलक रहा
हूं अब शहीद की विधवा मैं
कमजोर नहीं, मजबूर नहीं
दूर होकर भी वो दूर नहीं
अमर हुआ है मेरा सुहाग
सबके कहां ऐसे होते भाग
वो वीर सपूत इस जननी का
अपना धर्म निभा आया
वो वीर शहादत की देखो
इक नयी इबारत लिख लाया ।
जय हिंद जय हिंद की सेना
अभिलाषा चौहान
चित्र गूगल से साभार |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें