व्यथा विरहिणी की

विरहिणी जागे सारी रैन
पिया की याद में तरसे नैन
उमड घुमड़ घटा घिर आई
बिजूरि चमके सारी रैन
बैरी भये सावन के बदरवा
पिया की याद में जरे करेजवा
कैसे आये जिया को चैन
बैरन कोयलिया टेर लगाए
पपीहा पी पी राग सुनाए
तन पे गिरी पानी की बुंदिया
ज्यों गिरे जरे पे नौन
शीतल पुरवइया जब लागी
विरहाग्नि और भडकन लागी
अब तो बैरन निंदिया रानी
मोसे दूर खड़ी है इठलानी
कैसे धीरज धरे मेरा जियरा
तडपत बीत रहे दिन रैन
प्रीत पिया की बैरन बन गई
प्रीत में पूरी बावरी मैं बन गई
बैरी बना मेरा पूरा जमाना
किसी ने प्रीत का मर्म न जाना
रोज सुनाए मुझे जरीकटी बतिया
सुन सुन फाटे मेरी छतियां
कब आओगे मेरे प्रियतम प्यारे
राह निहारूं तेरी सांझ सकारे

अभिलाषा चौहान







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