आप बीती

हम पांच भाई बहन प्रगाढ़ बंधन में बंधे सदा
पांच पांडव
कहलाते थे। वक्त के साथ हम तीनों बहनों की शादी हुई और हम सब दूर हो गए पर स्नेह का बंधन दूरियां नहीं देखता और
हम सब एक बंद मुट्ठी के समान थे। बचपन का लडना झगडना, रूठना मनाना बदस्तूर जारी था  मैं सबसे बड़ी थी, मुझसे छोटा मेरा भाई
लोकेन्द्र, जिसे हम बबलू बुलाते थे, वह मेरे बहुत करीब था उसका कोई भी काम और मेरा कोई भी काम कभी एक दूसरे के बिना पूरा न होता  ।मुझे बस कहने भर की देर होती वह कैसे भी आता पर मेरे सामने खड़ा होता। बडी खुशहाल चल रही थी हमारी जिंदगी किंतु अचानक हमारी खुशियों को नजर लग गई, एक मामूली से फ्रेक्चर और डाॅक्टर के गलत इलाज से उसने ऐसा बिस्तर पकडा कि लाख
कोशिशों के बाद भी हम उसे ठीक नहीं कर पाए। काल और नियति हमारी कोशिशों पर भारी पड़ गए और हम उसे खो बैठे। आज सात महीने होने को आ रहे हैं, पर अभी भी
स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है । ऐसा लगता है,माला टूट गई और मनके  बिखर गए । अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उनकी अमानत
दो छोटे-छोटे बच्चों को हम लायक बना सके तो शायद उसके प्रति हमारा नेह सच हो जाएगा। आज का दिन मेरे लिए बहुत भारी था
उसकी याद ने मन को विचलित कर रखा था ।
ईश्वर से यही विनती है कि कभी किसी के साथ ऐसा न हो कि उसका अपना जाए और उसे पता भी न चले कि आखिर उसे हुआ क्या था?

अभिलाषा चौहान


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