परिचय की परिभाषा

चेहरे हैं जाने - पहचाने
पर मन से हैं अनजाने
दुख में साझीदार न बनते
सुख में साथ खड़े हो जाते
हाय हैलो का नाता है बस
कोई किसी को भाता है कब
अगल - बगल में रहने वाले
हों कितने जाने - पहचाने
वक्त पडे तब काम न आए
झूठा अपनापन छलकाएं
कैसा परिचय कैसा नाता
मन को ये समझ न आता
महानगरों की यही संस्कृति
व्यक्ति से अपरिचित व्यक्ति
कहां खो गए गली-मोहल्ले
मिलकर रहते होते हो-हल्ले
तीज-त्योहार भी ऐसे आते
मिलकर सब एक घर हो जाते
अब तो सब औपचारिक है बस
सभी बंध गए दायरों में बस
बदल गई हैं सब रीत पुरानी
जिनसे परिचित थी अंजानी
बदल गई अब जीवन शैली
परिचय की परिभाषा  बदली
चेहरे कितने हो जाने-पहचाने
कोई किसी को कहां हैं जाने

अभिलाषा चौहान

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