उदबोधन गीत.....

आंखों में हो ख्बाव और कदम जमीं पर
ऊंची हो हौंसलों की उड़ान निगाहें लक्ष्य पर

तो कौनसा है ख्बाव जो हकीकत न बने
सिर्फ सोचने से ही कभी सपने न सजे

कथनी -  करनी का अंतर बाधा सदा बना
कोरी कल्पनाओं के तू महल मत बना

आयेगी मुश्किलें और बाधाएं अनेक
सुविधाओं के आगे तू घुटने कभी न टेक

सोना भी आग में तपकर कुंदन है बना
तू शक्ति का है पुंज सामर्थ्य है घना

रोके तेरी राह ऐसी शय नहीं बनी
तू युवा तेरी सोच है बहुगुणी

साकार कर तू स्वप्न राह नयी बना
लिखदे नया इतिहास तुझमें बाहुबल घना

आंखों में हों ख्बाव ...........

अभिलाषा चौहान ।
चित्र गूगल से साभार 

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