ख्वाहिशें जिंदा हैं........

किसी दिन तो मेरे  शहर में भी बारिश होगी
ऐसे लम्हों की हमें हर पल ख्वाहिश होगी।

गिरती अमृत बूंदों से गर्द सब छट जाएगी
इंसानियत फिर निखर के रंग दिखलाएगी।

ख्वाहिशें जिंदा हैं मरते हुए इंसानों में
उम्मीद है कि जिंदगी फिर रंग दिखलाएगी।

संवेदनाएं दब गई है जिम्मेदारियों के बोझ तले
बारिशें फिर इन्हें उभार कर लाएगी।

बचपना जबसे खो गया है हम सबका
चैन आया नहीं किसी को एक पल का।

जिस दिन मेरे शहर में फिर से बारिश होगी
बचपना लौट आए तो जिंदगी, जिंदगी होगी।


ख्वाहिशें जिंदा रहती हैं इंसान चलें जाते हैं
अधूरे ख्बाव सदा इंसान को तडपाते हैं ।

जब खुदा के रहमोकरम की फिर बारिश होगी
उसकी नजरेइनायत से जिंदगी, जिंदगी होगी।

अभिलाषा चौहान 

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