कभी तो मिलेंगे
वो ढलती हुई सुरमई शाम में
तुम्हारी पहली झलक
जैसे उतर आया हो
कोई चांद जमीं पर
बिखर गई सर्वत्र
तुम्हारे रूप की चांदनी
देखते रह गए हम
अपलक जमीं के
चांद को
तुम्हारा यूं अचानक आना
आकर चले जाना
कर गया मदहोश हमें
वो तुम्हारी समंदर
सी गहरी आंखों में
डूबते उतराते
सरकने लगी जिंदगी
ज्यों ढल रही हो रात
जीवन की
इसी इंतजार में
कि कभी कहीं किसी
मोड़ पर तुम्हारा दीदार होगा
आंखें चार होगी
तुमको हमसे प्यार होगा
मेरा सपना तब कहीं
साकार होगा ।
अभिलाषा चौहान
तुम्हारी पहली झलक
जैसे उतर आया हो
कोई चांद जमीं पर
बिखर गई सर्वत्र
तुम्हारे रूप की चांदनी
देखते रह गए हम
अपलक जमीं के
चांद को
तुम्हारा यूं अचानक आना
आकर चले जाना
कर गया मदहोश हमें
वो तुम्हारी समंदर
सी गहरी आंखों में
डूबते उतराते
सरकने लगी जिंदगी
ज्यों ढल रही हो रात
जीवन की
इसी इंतजार में
कि कभी कहीं किसी
मोड़ पर तुम्हारा दीदार होगा
आंखें चार होगी
तुमको हमसे प्यार होगा
मेरा सपना तब कहीं
साकार होगा ।
अभिलाषा चौहान
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें