मन की गिरह खोल दो

दिल की बात जुबां पर लाओ तो सही
मन ही मन सोचने से है क्या फायदा
जब तक राज ए दिल पता न चले
गांठ मन की बताओ कैसे खुले
बात करने से बात बन जाती है
राह कोई न कोई निकल आती है
दूरी रिश्तों में बढ़ जाए ऐसा न हो
हाथ से सब निकल जाए ऐसा न हो
खोल दो सब गिरह जो दरम्यान है
जिनसे जिंदगी हो गई परेशान है
मुश्किलें और बढाने से क्या फायदा
सीखलो जिंदगी जीने का कायदा
बोझ बन जाए जीवन ऐसा नहो
जीना चाहो मगर फिर जी न सको
खुशियां बांटों कि सब मुस्कराने लगे
जिंदगी जीने का असली मजा आने लगे  ।

अभिलाषा चौहान


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