भीष्म पितामह की भीषण प्रतिज्ञा.......

भीष्म पितामह की भीषण प्रतिज्ञा से
रच गया था महाभारत
सही समय पर निर्णय न लेने से
छिड़ गया था गृहयुद्ध
आंखों के सामने देखा द्रोपदी का
चीरहरण
फिर भी न मुख खोला
कुछ भी न मुख से बोला
उनकी चुप्पी समझ नहीं आई
न एक अबला की लाज बचाई
अन्याय का न किया प्रतिकार
हो गई प्रतिष्ठा तार-तार
बंधे थे भीषण प्रतिज्ञा से
बने लकीर के फकीर
आज भी बैठे हैं चुप
समाज में भीष्म पितामह
देखते अन्याय, अत्याचार
लुटते अबला की लाज
सत्ता की खातिर सब कुछ
है स्वीकार
अधर्म की अनीति की
ढाल जाति पांति की
ये चुप्पी और आंखों पर
बंधी पट्टी रखती इन्हें
सच से बहुत दूर
हर घर महाभारत
हर ओर महाभारत
इन्हें है स्वीकार
नहीं छोड़ा इन्होंने आज भी
सत्य को अनदेखा करना
तभी तो बंटता देश समाज
परिवार क्योंकि
इन्हें बस स्व से है प्यार
इनके लिए बाकी सब बेकार

अभिलाषा चौहान

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