दुख का कारण

बहुत दिनों से मन को एक बात परेशान कर रही है कि आदमी के दुख का कारण असुविधाएं हैं या उसकी अपनी प्रवृति ?
मुझे लगता है कि असुविधाओं में आदमी जीवन जी सकता है किंतु उसकी अपनी प्रवृति
ही उसके दुख का सबसे बडा कारण है क्योंकि यदि सुविधाएं सर्वोपरि होती तो सुविधासम्पन्न
लोग ज्यादा प्रसन्न होते लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि वे ज्यादा दुखी हैं, जिन लोगों को भौतिक सुविधाओं की चाह है वेज्यादा से ज्यादा पाना चाहते हैं, ऐसे लोग छोटे घर से भी
परेशान होते हैं और बड़े घर से भी । उनका पूरा जीवन झींकते हुए या नुक्ताचीनी करते हुए
बीतता है। इस जद्दोजहद में वे अपने अनमोल
जीवन को व्यर्थ गंवा देते है । उनका अपना जीवन तो समस्याओं से घिरा होता है किन्तु वे साथ वालों का जीवन भी दूभर कर देते हैं। उनका सारा जीवन उपभोग की वस्तुओं को एकत्र करने में निकल जाता है पर वे उसका सुख नहीं भोग पाते। इसका कारण असंतोष है
और असंतोष से मन की शांति नष्ट हो जाती है और जीवन अशांत हो जाता है।  सोचने वाली
बात ये है कि मूर्ख लोग इस अनमोल जीवन को जीने की बजाए सांसारिक वस्तुओं के लिए लडते झगडते रहते हैं और अंतत संसार से चले जाते हैं अतः सोचिए कि जीवन जीना है या खोना है क्योंकि सब धरा का धरा पर धरा रह जाना है जो जी लिया बस वही साथ जाना है 

अभिलाषा चौहान 

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