अपूर्ण यात्रा

भौतिकता और अध्यात्म में उलझता मानव जीवन फंस जाता है अक्सर भौतिकता के व्यामोह में। माया का आवरण ढंक लेता अंतरतम को नहीं सूझती कोई राह अध्यात्म से बेपरवाह कस्तूरी मृग सम भटकता संसार में। सुख, शांति,संतोष की प्रबल लालसा भौतिक साधनों में ढूंढती आत्मानंद। बौद्धिकता का बन प्रबल दास आत्मा को देता नकार अहम के घोड़े पर सवार चंचल मन व्याकुल अतृप्त प्यासा मायावी दुनिया में ढूंढता अमृत की बूँद। ध्यान, चिंतन, योग का अभाव घटता हुआ सद्भाव कर देता विमुख अध्यात्म से जो यात्रा है आत्मा की परमात्मा से मिलन की वह अपूर्ण रह जाती है। अभिलाषा चौहान स्वरचित 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷