दीवार को दीवार ही रहने दो !

ये दीवारें
जो कभी नहीं बोलती
जो कभी नहीं सुनती
बनी रहती हैं मूक
देखती हैं सब घटते हुए
गवाह हैं बीते कल की
नहीं बांटती किसी का सुख दुख
खड़ी रहती हैं निर्जीव निश्चल
फिर भी हैं बदनाम
लोग कहते हैं कि दीवारों के कान होते हैं।
सच तो यह है कि
दीवार हमने बनाई है
अपने-अपने दरम्यान
तभी तो दूर हैं
अपने अपनों से
बच्चे सपनों से
समाज हकीकत से
लोग इंसानियत से
मत करो दीवारों को बदनाम ।
आओ मिलकर दीवार हटाएं
जो हमने खड़ी की हैं
अपने-अपने दरम्यान
जाति, धर्म, ऊंच-नीच
और अमीर-गरीब की
आओ जोडें दिलों के तार
हट जाएं सारे भेद
मिट जाए मतभेद
मिल जाएं मन
बनें सुंदर, सरल, जीवन
इंसान फिर इंसान कहलाए
इंसानियत अपना परचम लहराए
सब हो जाए एकसार
दीवार को दीवार ही रहने दो
इन्हें अपने भीतर खड़ा मत करो ।

अभिलाषा चौहान




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