बिछ गई है चौसर

बिछ गई चुनावी चौसर

जुट गए हैं सभी धुरंधर

लेकर अपने अपने पांसे

चलने लगे चुनावी दांव

शुरू हुआ आरोपों प्रत्यारोपों का दौर

त्याग कर मर्यादा जिसका ओर न छोर

लगे उखडने गडे़ मुर्दे

बोलने लगे अपने बोल

आरक्षण व राम मंदिर लगे पीटने ढोल

गडबड घोटालों की लगे खोलने पोल

किसान की पीड़ा पर राजनीति गरमाई

हिंदू मुस्लिम समुदायों की चिंता भी हो आई

सुरसा के मुख सी बढती जाती है महंगाई

सबको अपनी कुर्सी की चिंतां

जनता किसको प्यारी

पांच वर्ष तक इन्हें भुगतते

अपना सब कुछ हारी

फिर से वही बिसात बिछी है

सत्ता पाने की होड़ मची है

जनता की किसी ने न सुनी है

जहां देखो खींच तान मची है

 देश की चिंता किसी को नहीं है।



अभिलाषा चौहान


चित्र गूगल से साभार 


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