हौंसले को सलाम (माउंटेन मैन - दशरथ मांझी)

माउंटेन मैन "दशरथ मांझी" के हौंसले को
सलाम। जिन्होंने 25 वर्षों की अथक मेहनत
से अकेले ही पहाड़ काटकर अपने गांव को
शहर से जोड़ने के लिए सड़क बनाई। लोगों
का उपहास भी उन्हें रोक नहीं पाया । बाधाएं
भी उन्हें हतोत्साहित नहीं कर सकी । उनकी
प्रेरणास्रोत थी उनकी पत्नी 'फाल्गुनी देवी ',
जिनकी उस पहाड़ से गिरकर मृत्यु हो गई थी ।
उन्हें समर्पित कविता - - - -


आर्थिक स्थिति जर्जर किंतु हौंसला अपार , बाधाओं से उसने कभी न मानी हार।

काट रहा था लकड़ी पर्वत के उस पार ,
पत्नी खाना लेकर आती थी हर बार।

वक्त बुरा था उस दिन न कर पाई पर्वत पार,
पर्वत से गिरकर जीवन से गई हार।

पत्नी की मृत्यु से व्यथित बेकरार,
पर्वत को शत्रु समझा कर बैठा इकरार।

जब तक पर्वत से न निकलेगी राह,
तब तक न बैठूंगा चैन से न मानूंगा हार।

हाथ हथौड़ा लेकर करता पर्वत पर प्रहार,
विषम परिस्थितियों में भी न मानी उसने हार।

लोगों ने पागल कहकर उपहास किया हरबार,
अपनी धुन का पक्का था हौंसला अपार।

कितने बीते वर्ष बीते जीवन दिया निसार,        पर्वत से बना दी राह किया इच्छा को साकार।

अगर मन में किसी के हो हौंसला अपार,
असंभव को भी संभव करना हो जाता साकार।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित










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