प्रीत की रीत


प्रीत की रीत बड़ी पुरानी,
मीरा कृष्ण प्रीत जग जानी।

जग न समझे प्रीत की वाणी,
रही मीरा इससे अंजानी ।

जाने कितनी ऐसी कहानी,
प्रीत में डूबी जग से बेगानी।

प्रीत समर्पण पूरा मांगे,
कुछ न भाता प्रीत के आगे।

लोक लाज मर्यादा जग की,
प्रीत के आगे पानी भरती ।

प्रीत दीवानी मीरा होई,
राधा कृष्ण के प्रेम में खोई।

सच्ची प्रीत की डगर कठिन है,
कांटे राह बिछे अनगिन है।

प्रीत का जग बैरी बन जाए,
प्रीत का भाव न जग को भाए।

विष का प्याला पीना पड़े है,
प्रीत तभी परवान चढ़े है।

प्रीत न देखे अपना-पराया,
प्रीत में प्रीतम ही मन भाया।

अभिलाषा चौहान


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