चीर हरण ??

टूटती - बिखरती मर्यादाएं,
विश्रृंखल होता समाज,
संबंध होते तार-तार।
हो रहा चीरहरण,
भारतीय संस्कृति का।

बन गए राम प्रतीक मात्र
कहां आचरण में दिखते
मर्यादा पुरुषोत्तम।
कहां है रामराज्य?

नारी की अस्मत
लुटती सरे बाजार
मासूम कलियाँ भी
होती हैवानियत का शिकार।

वृद्धाश्रम में रोते मां-बाप,
भोगते वनवास।
होता रोज रिश्तों का कत्ल,
होता हर पल आदमी का शिकार।

अमर्यादित हो रहा समाज,
पनप रहे धोखे-फरेब के वृक्ष,
उजड़ रहा विश्वास का गुलशन,
सूख रहा स्नेह - त्याग का पुष्प,
कर भंग अपनी मर्यादा
बो रहा विष की अमर बेल।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


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