करवाचौथ पर्व पुनीत प्रेम का
करवाचौथ पर्व पुनीत प्रेम का,
पति की दीर्घायु कुशल क्षेम का।
फिर आया पावन पर्व मनोहर,
हृदय भाव बहते हैं निर्झर।
प्रेम - प्रीत परवान चढ़ी है ,
मन-वीणा झंकृत हो उठी है।
प्रियतम जनम - जनम के साथी,
साथ हमारा दिया और बाती।
कभी ये सोलह श्रृंगार न छूटें,
भाग्य मेरा मुझसे न रूठे।
बनी सुहागन रहूं सुहागन,
मर कर भी मैं सदा सुहागन।
घूमूं फिरूं मैं तेरे आंगन,
ओ मनमीत मेरे मनभावन।
मांग सदा सिंदूर से दमके,
माथे पर सदा बिंदिया चमके।
हाथों में कंगन की खन-खन,
पैरों में पायल की छन-छन।
आज बनी मैं फिर से दुल्हन,
भाव हृदय के तुझको अर्पण।
तुम हो चांद मेरे जीवन के ,
सदा चमकना चंद्रमा जैसे।
आओ तुम्हारी आरती उतारूं ,
नयनों से ये छवि निहारूं।
करके पूजा मैं माता की
दुआ मांगू तेरी लंबी उम्र की।
रखना मेरी प्रीत का मान ,
मैं शरीर तुम मेरे प्राण।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
पति की दीर्घायु कुशल क्षेम का।
फिर आया पावन पर्व मनोहर,
हृदय भाव बहते हैं निर्झर।
प्रेम - प्रीत परवान चढ़ी है ,
मन-वीणा झंकृत हो उठी है।
प्रियतम जनम - जनम के साथी,
साथ हमारा दिया और बाती।
कभी ये सोलह श्रृंगार न छूटें,
भाग्य मेरा मुझसे न रूठे।
बनी सुहागन रहूं सुहागन,
मर कर भी मैं सदा सुहागन।
घूमूं फिरूं मैं तेरे आंगन,
ओ मनमीत मेरे मनभावन।
मांग सदा सिंदूर से दमके,
माथे पर सदा बिंदिया चमके।
हाथों में कंगन की खन-खन,
पैरों में पायल की छन-छन।
आज बनी मैं फिर से दुल्हन,
भाव हृदय के तुझको अर्पण।
तुम हो चांद मेरे जीवन के ,
सदा चमकना चंद्रमा जैसे।
आओ तुम्हारी आरती उतारूं ,
नयनों से ये छवि निहारूं।
करके पूजा मैं माता की
दुआ मांगू तेरी लंबी उम्र की।
रखना मेरी प्रीत का मान ,
मैं शरीर तुम मेरे प्राण।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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