फिर आया सवेरा
******सवेरा******
देखो फिर से हुआ सवेरा,
सूर्यदेव ने डाला डेरा।
पक्षीद्वय भी जाग उठें हैं,
कलरव उनके गूंज रहे हैं।
वृक्षों ने भी ली अंगड़ाई,
चलने लगी पवन पुरवाई ।
ओस की बूंदें चमकी ऐसे,
हीरे की कनियां हो जैसे।
कलियाँ भी फिर से मुस्काई,
खिलने की बारी जो आई।
हमने भी जब आंखें खोली,
ईश्वर से इक बात ही बोली।
सबके जीवन आए सवेरा,
कहीं नहीं हो तम का घेरा।
नित खुशियां वहां करे बसेरा,
ऐसा आए नित नया सवेरा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
देखो फिर से हुआ सवेरा,
सूर्यदेव ने डाला डेरा।
पक्षीद्वय भी जाग उठें हैं,
कलरव उनके गूंज रहे हैं।
वृक्षों ने भी ली अंगड़ाई,
चलने लगी पवन पुरवाई ।
ओस की बूंदें चमकी ऐसे,
हीरे की कनियां हो जैसे।
कलियाँ भी फिर से मुस्काई,
खिलने की बारी जो आई।
हमने भी जब आंखें खोली,
ईश्वर से इक बात ही बोली।
सबके जीवन आए सवेरा,
कहीं नहीं हो तम का घेरा।
नित खुशियां वहां करे बसेरा,
ऐसा आए नित नया सवेरा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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चित्र गूगल से साभार |
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