बड़ा भयावह मंजर (अमृतसर हादसा)

हो रहा था रावण दहन
सब हो रहे थे खूब मगन
लेकिन लग गया ग्रहण
खुशियाँ हो गई दफन।

खड़े हुए पटरी पर लोग
रहे मेले का आनंद भोग
काली अंधियारी थी रैन
काल बन कर आई ट्रेन।

कुचल गई कितनी जानें
बिछड़ गए ही अनजाने
कितने अपने कितने सपने
हो गए दफन जाने कितने।

बड़ा भयावह था मंजर
बिखरे पड़े कितने पिंजर
सब ओर थी चीख पुकार मची
मौत की लकीर थी वहाँ खिंची।

कब तक ऐसे हादसे होंगे?
एक दूसरे पर हम दोष मढ़ेंगे??
कब प्रशासन सुधरेगा??
कब हम इनसे सबक लेंगे??

अभिलाषा चौहान





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