महिमा अपरंपार है इनकी

मेरी इस रचना का उद्देश्य किसी वर्ग विशेष पर
आक्षेप करना नहीं है बल्कि मैं उस सत्य को
शब्द रूप में प्रकट कर रहीं हूँ जो प्रतिदिन हमारे सामने आता है।

बड़ा अच्छा धंधा है, शिक्षा का न फंदा है।
न ही कोई परीक्षा है, लेनी बस दीक्षा है।
बन जाओ किसी बाबा के चेले।
नहीं रहोगे तुम कभी अकेले।
इस धंधे में मिली हुई सबकोआजादी
कोई कितना बड़ा चाहे हो अपराधी
मनचाहा पैसा है, मनचाहा वातावरण है।
जिसने ले ली ढोंगी बाबाओं की शरण है।
उसने कर लिया अपनी चिंताओं का हरण है ।
भविष्यवाणियाँ करके जनता को खूब डराते।
सेवा-मेवा पाते, जनता को उल्लू बनाते ।
आलीशान होती है इनकी जीवन शैली ।
ऐशो आरामों से भरी रहती है हवेली।
हाथ जोड़कर बैठी रहती है जनता भोली।
खुलने लगी है अब इनकी पोलम पोली।
संत-असंत का भेद कैसे समझे जनता?
जिसको कहीं जगह नहीं वही संत बन जाता।
चौपहिया वाहनों के होते हैं ये स्वामी
ऊपर से बनते संत अंदर से होते कामी।
सुरक्षा में इनके रहती नहीं कोई खामी।
डिजिटल हो गए आज के साधु - संत
इनकी महिमा का कोई नहीं है अंत।
चोला राम नाम का पहनते
राम नाम का मरम न समझते।
सुविधा त्याग राम भए संन्यासी
ये सुविधाओं में हैं संन्यासी
महिमा इनकी अपरंपार
शब्दों में जो न हो साकार।।।

अभिलाषा चौहान

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