रात शबनमी

रात शबनमी आंखों में नमी
खल रही थी दिल को किसी की कमी

बेसाख्ता यादों के फूल झरने लगे,
हम पहलू में उनको समेटने लगे।

आंसुओं की लगने लगी थी झड़ी,
बीता हर लम्हा याद आया उस घड़ी।

टूट-टूट कर बिखरती रही जिंदगी,
अब खुशियों की हम क्यों करें बंदगी।

जिंदगी शबे-गम की परीक्षा सही,
किस्मत में लिखा बस होगा वही।

दिल को अब तक न आया है यकीं,
तुम भी चमकते हो इन तारों में कहीं!

अभिलाषा चौहान

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