रोशनी औरों के यहाँ बिखेर देते हैं !

जिनके घर महलों से नहीं होते हैं,
उनके दरवाजे सबके लिए खुले होते हैं।
तंगहाली में खुशहाल रहते हैं वो लोग
सबकी मदद को वे खड़े रहते हैं।

प्रेम से सजा होता है घर उनका,
गैरों के दुख - दर्द अपने होते हैं ।
इंसानियत रग-रग से झलकती उनके,
करूणा से हृदय भरे होते हैं ।

जिंदादिली से जीते जीवन वे सदा,
हंसकर गम को भुला देते हैं।
साजों-सामां घर में हो या न हो,
घर को घरवालों से सजा लेते हैं।

खुशियों को बांटकर खुश होते,
गम को बिछौना बना के सोते हैं।
करता सुकून उनके घर में बसेरा,
गैरों को अपना बना लेते हैं ।

रहते दिल के दरवाजे उनके खुले,
बंधनों को वे पनाह नहीं देते हैं ।
रोज उगाते वे अपना सूरज,
रोशनी औरों के यहां बिखेर देते हैं ।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

(हमकदम) 


टिप्पणियाँ

  1. रहते दिल के दरवाजे उनके खुले,
    बंधनों को वे पनाह नहीं देते हैं।
    रोज उगाते वे अपना सूरज,
    रोशनी औरों के यहां बिखेर देते हैं।
    बहुत सुंदर, अभिलाषा दी।

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