जीवन - यात्रा

वेद उपनिषद गीता पुराण,
जीवन उद्देश्य का करे बखान।

चौरासी लाख होती है योनि,
सबसे श्रेष्ठ है मानव योनि।

जन्म मनुष्य का होता अनमोल,
करो सत्कर्म सदा दिल खोल।

ईश्वर ने दिए दायित्व मनुज को,
जग कल्याण करना है सबको।

जन्म मरण निरंतरता सृष्टि की,
आत्मा कभी नहीं है मरती।

बहुविधि रूप आत्मा धरती है,
समय आने पर वस्त्र बदलती है।

मां के गर्भ से शुरू होती यात्रा,
हरपल रूप बदलती यात्रा।

देती हरपल हमको ये संदेश,
नहीं शाश्वत है हमारा वेश।

चलो सत्पथ करो ईश्वर भक्ति,
तभी भवसागर से पाओगे मुक्ति।

अभिलाषा चौहान


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