आंसुओं को पनाह नहीं मिलती

तोहमतें हजार मिलती हैं,
नफरतें हर बार मिलती हैं,
टूट कर बिखरने लगता है दिल,
आंखें जार-जार रोती हैं,
देख कर भी अनदेखा कर देते हैं लोग,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।

मुफलिसी के आलम में गुजरती जिंदगी,
सपनों को बिखरते देखा करे जिंदगी ,
फिरती है दर-बदर ठोंकरे खाती,
किस्मत को बार - बार आजमती जिंदगी,
मौतें हजार मिलती हैं,
आंखें जार-जार रोती हैं,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।

अपनों को तड़पते देखती जिंदगी,
चंद सिक्कों के लिए भटकती जिंदगी,
मारी- मारी फिरती है दर-बदर,
इंसान की इंसान ही करता नहीं कदर,
इंसानियत जार - जार रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।

तड़पती मासूम भेड़ियों के बीच में,
दुबकती और सिमटती है,
मांगती भीख रहनुमाई की,
हैवानियत कहां रोके रुकती है,
सिसकती है और फूट-फूट कर रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।

टूटता घर और फूटता नसीब उनका,
बन गए हैं बोझ जहां रिश्ते,
देखते उजड़ते आशियाने को,
बूढ़े मां-बाप अपने श्रवणों को,
उनकी ममता बार-बार रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती। ।

अभिलाषा चौहान

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