हृदय भाव बहते निर्झर

हृदय भाव बहते निर्झर,
भावों की भूमि सदा उर्वर।
भावों के मोती चुन-चुनकर,
शब्दों की माला में ढ़ल कर।
सुंदर बनता है काव्य सदा,
मन आनंदित रहता सदा।
अविरल पथ है भावों का,
सुंदर - सुंदर सद्भावों का।
भावों की माला में गुंथकर,
सृजन काव्य का होता है।
भाव काव्य का होता प्राण, 
शब्द शरीर का करे निर्माण।
तब उत्तम काव्य सृजित हुआ,
रसमय सारा संसार हुआ,
क्लेश-विकार का नाश हुआ।
अब जीवन आलोकित है,
जीवन उद्देश्य भी लक्षित है ।
काव्यामृत से जीवन सिंचित है,
अब यही पथ हमें वांछित है।
यह यात्रा ऐसे ही चलती रहे,
नित पुष्पित - पल्लवित होती रहे।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित








                                                     

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