मनवा रहता है भरमाया

कोरी चादर दाग लगाए फिरता उसपर यूँ इतराया मैली गठरी ढोता जैसे मनवा रहता है भरमाया। काम जकड़ता बेड़ी बनकर माया जड़ती उसपर ताले अन्धेकूप में भटके बुद्धि मक्खी मारे बैठे ठाले। पिंजरे में बंदी हंस कभी ज्ञान-मोती नहीं चुग पाया मैली..........................।। कैसी प्यास जगी है मन में नदिया-सागर लगते झूठे खाली गगरी लिए हाथ में फिरता जग में तूठे-तूठे भवसागर की चमक-दमक में सत्य कहीं जा बिसरा आया मैली------------------------।। फीकी पड़ती चमक चाँदनी छँटने लगे भ्रम के जाले हंसा पी की पुकार लगाए जिह्वा पड़ते रहते छाले वह आत्मबोध की ज्योति जली यह भू पतिता कंचुक काया। मैली--------------------------।। अभिलाषा चौहान