ये कहाँ जा रहें हम??
समाज के बिगड़ते स्वरूप को देख मन बड़ा व्यथित हैं।हम आगे बढ़ रहें हैं या पतन की ओर बढ़ रहें हैं।हमने क्या पाया है?एक ऐसी पीढ़ी जिसका भविष्य अंधकारमय है।इस अंधकार का जनक संस्कारों का पतन है। साहित्य का सदा से यही प्रयास रहा है कि समाज से अंधकार मिटे ।लोग संस्कारों का महत्व समझें।एक स्वस्थ और सुंदर समाज की रचना हो।पर ऐसा स्वस्थ और सुंदर समाज सदा से कल्पनाओं में देखा है,हकीकत तो बहुत ही दुखदाई है।
हमारे पूर्वजों ने समाज को व्यवस्थित रखने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए थे।आज वे नियम कहीं दिखाई नहीं देते। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। समाज में बढ़ता अनाचार इसका प्रतीक है।यदि संस्कार नहीं तो शिक्षा का भी कोई औचित्य नहीं है।जैसे बिना मूल के वृक्ष का अस्तित्व नहीं है वैसे ही बिना संस्कार के शिक्षा भी निरर्थक है।आज समाज का अपराधीकरण हो गया है। समाचार पत्र उठाइए तो हत्या,धोखा लूटपाट, आत्महत्या, बलात्कार की खबरों का ही बोलबाला होता है और न्यूज़ चैनल लगाइए तो भी यही सब सुनाई देता है।ऐसा लगता है कि समाज में इसके अलावा और कुछ होता ही नहीं है।टूटते-बिखरते परिवार,बढ़ता अविश्वास, संबंधों में अस्थिरता,किशोरों और युवाओं में बढ़ता आक्रोश, उच्छृंखलता,नशाखोरी, इंटरनेट का दुरुपयोग, अहंकार,सहन शीलता की कमी, कर्महीनता,बिना कुछ किए सफल होने की कामना,मंहगी गाड़ी,मँहगे मोबाइल, अमीरों जैसी लाइफ स्टाइल की कामना आज रिश्तों पर और संस्कारों पर भारी पड़ गई है।लव जेहाद हो या आनर किलिंग,या लड़कियों की खरीद-फरोख्त इन सभी के मूल में पैसों की भूख, असहनशीलता ,आक्रोश,हिंसा ,क्रोध जैसे कारक निहित है।ऐसा नहीं है कि किसी भी प्रकार के अपराध को अंजाम देने वाला अशिक्षित होता है, नहीं बड़े-बड़े पदों पर आसीन,उच्च डिग्री धारक भी जघन्य अपराधों में लिप्त होते हैं।उनकी शिक्षा उनके किसी काम नहीं आती। इसलिए व्यक्ति का शिक्षित होने से ज्यादा संस्कारी होना आवश्यक है। संस्कार परिवार और समाज से मिलते हैं।आज इस विषय पर गहन चिंतन की आवश्यकता है कि क्या हम अपने बच्चों में अच्छे संस्कारों के बीज रोप पा रहें हैं? क्यों हमारे बच्चे कुपथ पर चल रहें हैं?क्यों वे माता-पिता को अपना शत्रु समझते हैं? क्यों शिक्षा से ज्यादा उनके लिए प्रेम-प्रसंग महत्वपूर्ण हो जाते हैं?क्यों वे बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में लिप्त हो जाते हैं? क्यों वे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं? क्यों उनकी मांगे पूरी न होने पर वे घर छोड़कर भाग जाते हैं?ऐसे अनगिनत प्रश्न हमारे सामने हैं,जिनका जबाव हमें ढूँढना है।
हमारे यहां धन से ज्यादा सद्गुणों को महत्व दिया जाता था।आज धन सर्वोपरि है। पूंजीवादी व्यवस्था ने संस्कारों की चिता जला दी है।रिश्ते-नातों का कोई महत्व नहीं रहा।पति-पत्नी के रिश्तों में बढ़ती खटास,एकल परिवार आज बच्चों में आक्रोश के जनक बन गए हैं।शिक्षा के मंदिर भी आज अपवित्र होते जा रहे हैं।गुरु और शिष्य का रिश्ता सबसे पवित्र माना जाता था,आज ऐसे किस्से भी बहुतायत में सुनने को मिलते हैं,जहां गुरु अपना गुरुत्व खोकर अपराध में लिप्त है।जब हम ऐसे समाज का निर्माण कर रहें हैं, जहां स्वसुख सर्वोपरि है,चाहे वह कैसे भी प्राप्त किया जाए,तो शिक्षा और संस्कार नगण्य हो जाते हैं।यदि हमें एक स्वस्थ समाज चाहिए तो पुनः अपनी जड़ों से,अपनी परंपराओं से जुड़ना होगा।बच्चे आने वाले कल का भविष्य हैं, सिर्फ शिक्षा से उनका उद्धार संभव नहीं, उन्हें संस्कारित करना अनिवार्य है।माता-पिता को अपने इस उत्तरदायित्व को हरहाल में पूरा करना चाहिए। बच्चों को इस तरह की परवरिश देनी चाहिए कि वे दूसरों की बातें सुन और समझ सकें।सही-गलत में फर्क कर सकें।उनका मित्र बनिए ताकि वे अपने मन की बात आपसे कह सकें।हो सके तो उनकी बातों को अच्छे से सुनिए और उन्हें सही सलाह दीजिए।कभी उनसे रिश्ता मत तोड़िए।हम जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं इसलिए कोशिश कीजिए कि हम अच्छे संस्कारों के बीज रोपित कर सकें।तभी शिक्षा भी लाभदायक सिद्ध होगी।
अभिलाषा चौहान
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 24 नवंबर 2022 को 'बचपन बीता इस गुलशन में' (चर्चा अंक 4620) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 24 नवंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंसंस्कार और मर्यादित व्यवहार बालपन से विकसित होते हैं.घर-बाहर का वातावरण भी प्रभाव डालता है.
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंवर्तमान हालातों का सटीक विश्लेषण, सोशल मीडिया के इस दौर में माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं है, वे कम उम्र से मोबाइल, टीवी पर हिंसा आदि देखते हैं जो उनके कोमल मन पर बुरा असर डाल सकता है
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया अनीता जी सादर
हटाएंवर्तमान समय का यथार्थ चित्रण बहुत सही किया है आपने।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सादर
हटाएंसकारात्मक समसामयिक लेख
जवाब देंहटाएंवर्तमान स्थिति का सटीक विश्लेषण किय है सखी आपने ।
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