कोई अब न रहे उदास




उमड़ घुमड़ कर घटा घनेरी

भरती हैं हृदय में आस

नर्तन करती किरणें बोलें

मन में रखो तुम विश्वास 


पवन कहे कानों में आकर

जीवन का ये सत्य बड़ा

सुख-दुख के प्रत्यावर्तन में

जीत उसी की रहा अड़ा

लुका-छिपी का खेल निराला

जगा रहा अबूझी प्यास


उच्च श्रृंग करता आकर्षित

देता यही नित संदेश

बाधाओं को चीर बढ़ो अब

बदलेगा तभी परिवेश

धूप निखरती छटे अँधेरा

कोई अब न रहे उदास


आज बेडियाँ निर्बल होती

सदा गूँजती उनकी आह

उड़ने को यदि पंख मिलें हैं

नभ छूने की रखो चाह

आज क्षितिज बाँहें फैलाता

कर लेना इसका आभास।।


अभिलाषा चौहान 







टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-11-22} को "कोई अब न रहे उदास"(चर्चा अंक-4618) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  3. जीवन आस जगाती बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!सखी ,बहुत खूब! उडने को जब पंख मिले हों ,नभ छूने की रखो चाह .....वाह!!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं

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