गीत जीवन गा उठेगा







मन भ्रमर बन बावरा सा

है अहम में फूलता सा

सुमन मुरझाए पड़े सब

दृश्य कुछ ये शूलता सा


साँझ ढलती कह रही है

आस को मत छोड़ना अब

टूट के बिखरे जो मनके

प्यार से अब जोड़ना सब

गीत जीवन गा उठेगा

देख सब कुछ झूमता सा


चाँद भी ओढ़े उदासी

चाँदनी विरहन बनी है

ये पवन सौरभ समेटे

याद की चादर तनी है

नयन पट ढूँढे किसी को

था लगा जो भूलता सा।


भोर की किरणें सुनहरी

धो रहीं हैं कालिमा को

छँट रही है धुंध सारी

देखकर इस लालिमा को

प्रीत हिंडोले लहर में

हिय कुसुम कुछ झूलता सा।


अभिलाषा चौहान 

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-11-2022) को   "दोहा छन्द प्रसिद्ध"   (चर्चा अंक-4613)  पर भी होगी।--
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-11-2022) को   "दोहा छन्द प्रसिद्ध"   (चर्चा अंक-4613)  पर भी होगी।--
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-11-2022) को   "दोहा छन्द प्रसिद्ध"   (चर्चा अंक-4613)  पर भी होगी।--
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 नवंबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. भोर की किरणें सुनहरी

    धो रहीं हैं कालिमा को

    छँट रही है धुंध सारी

    देखकर इस लालिमा को
    अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर करती बहुत ही सुंदर नवगीत सखी ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु

      हटाएं

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