कुण्डलिया
१.
चंचल चपला सी लली,खोले अपने केश।
मुख चंदा सा सोहता,सुंदर उसका वेश।
सुंदर उसका वेश,चली वो लेकर गजरा।
देखा उसका रूप,आँख से दिल में उतरा।
कहती 'अभि' निज बात,मचा है हिय में दंगल।
देख सलोना रूप,प्रेम में तन-मन चंचल।
२.
पायल पैरों में सजे,बेंदी चमके माथ।
कानों में कुंडल सजे,कंगन पहने हाथ।
कंगन पहने हाथ,गले मोती की माला।
ओढ़ चुनरिया लाल,कमर में गुच्छा डाला।
कहती 'अभि' निज बात,करे वो सबको घायल।
गोरी घूमें गाँव,पहन पैरों में पायल।
३.
वामा बोली प्रेम से,आया है त्योहार।
सजना अबकी से मिले, नया नौलखा हार।
नया नौलखा हार,साथ में कान के बाले।
कंगन ला दो नाथ,जड़ाऊ हीरे वाले।
वामा की सुन बात,सजन ने माथा थामा।
करती मांग अनेक,याद कर करके वामा।
अभिलाषा चौहान
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंबहुत सुंदर कुण्डलियाँ छंद के सृजन सखी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंवाह!सखी ,बहुत खूबसूरत सृजन !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-11-22} को "पंख मेरे मत कतरो"(चर्चा अंक 4610) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंक्षमा चाहती हूँ रविवार (13 -11-22)
जवाब देंहटाएंगिरधर कविराय की कुंडलियों के बाद अभिलाषा कवियित्री की सुन्दर कुण्डलियाँ !
जवाब देंहटाएंआदरणीय ये तो आप चने के झाड़ पर चढ़ा रहें हैं,कहाँ मैं और कहाँ गिरधर कविराज, मैं तो उनके चरणों की धूल भी नहीं। आपको अच्छी लगीं तो अलग बात है।आपका हृदय से आभार सादर
हटाएंवाह अति सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंगिरिधर कविराय के युग के उपरांत अब जाकर ऐसी सुंदर कुण्डलियां पठन हेतु उपलब्ध हुई प्रतीत होती हैं। यह प्रतिभा असाधारण है, इसमें कोई संदेह नहीं। वीणावादिनी की अनुकम्पा है आप पर। सदा बनी रहे, यही मेरी शुभेच्छा है।
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