आल्हा छंद -सत्ता पुराण





सत्ता के गलियारे शापित,

भ्रष्टों का ही चलता जोर।

मेल नहीं कथनी करनी में ,

दिल में इनके बैठा चोर।


धूल फाँकते मुद्दे सारे,

वादों का कब होता मोल।

मोल नहीं है सच्चाई का ,

बातों में होता है झोल।


अपनी खूबी रोज गिनाएं,

बड़े-बड़े इनके हैं बोल।

औरों की निंदा ये करते,

पीट रहे नित झूठे ढोल।


ये विकास की बातें सुनकर,

बहरे हुए हमारे कान।

गडढों वाली सड़कें निशदिन,

ले लेती हैं कितनी जान।


टैक्स चुकाए कैसे जनता,

काट-काट कर अपना पेट।

काले धन के स्वामी करते,

सपने सारे मटियामेट।


कीचड़ मिलकर सभी उछालें,

नीति-नियम रख देते ताक।

हिन्दू-मुस्लिम भेद बढ़ाएं,

और बचाएं अपनी नाक।


मुर्दें गडे़ उखाड़ रहे सब,

भाग्य भरोसे चलता देश।

बढ़े प्रदूषण कितना ज्यादा,

मैला होता है परिवेश।


आने वाली पीढ़ी देखे,

स्वार्थ भरे ये इनके काम।

इनको वे आदर्श बनाएँ,

कैसा देते ये पैगाम।


सत्ता का तो लोभ बुरा है,

सच्चों का बिगड़े ईमान।

शक्ति का दुरुपयोग यहां पर,

कौन करे किसका सम्मान।


सीमा पर सैनिक बलिदानी,

खेत झूलता रोज किसान।

अबलाओं की लाज लुटे नित,

कहाँ किसी का इसपर ध्यान।


अपनी-अपनी ढ़पली बजती,

निर्धन पर नित पड़ती मार।

मंहगाई डायन बनकर नित,

छीन रही सबके अधिकार।


धन ही बाप बना अब सबका,

पीछे छूटे सब संस्कार।

राम भरोसे चलती नैया,

कैसे होगा बेड़ा पार।


वन-कानन पर चलती आरी,

उजड़ चले अब सारे बाग।

पंछी के घर बार छिने सब,

सुलग रही ये कैसी आग।


नदियों को नाले में बदला,

धरती थर-थर काँपे रोज ।

पर्वत भी सहमे-सहमे से ,

प्रकृति का छिन गया है ओज।


अभिलाषा चौहान 





टिप्पणियाँ

  1. कटु सत्य को उद्घाटित करने का साहस किया है आपने। अभिनंदन।

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  2. वाह!सखी ,बहुत खूब .. राम भरोसे ही है गाडी ...।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-11-2022) को   "माता जी का द्वार"   (चर्चा अंक-4615)     पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

    जवाब देंहटाएं
  4. आक़ाओं की करे बुराई
    उसको भेजो कारागार
    दूध धुले निष्पाप जनों की
    निंदा देगी कष्ट अपार
    त्याग और बलिदान मूर्ति ये
    स्विस खातों की पर भरमार
    देश डुबा अपराध बढ़ाएं
    फिर भी हो इनकी जयकार


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  5. सामायिक परिदृश्य का सटीक दर्शन सटीक दर्शन करवाती सुंदर रचना।

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  6. वाह क्या खूब कहा

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